गीतिका/ग़ज़ल

कंक्रीटों के जंगल

 

इन कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपना
जमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनाते हैं

ना ही रोशनी आये ना खुशबु ही बिखर पाये
हालात देखकर घर की पक्षी भी लजाते हैं

दीवारेँ ही दीवारें नजर आये घरों में क्यों
पड़ोसी से मिले नजरें तो कैसे मुहँ बनाते हैं

मिलने का चलन यारो ना जाने कब से गुम अब है
टी वी और नेट से ही समय अपना बिताते हैं

ना दिल में ही जगह यारो ना घर में ही जगह यारो
भूले से भी मेहमाँ को नहीं घर में टिकाते हैं

अब सन्नाटे के घेरे में जरुरत भर ही आवाजें
दिल की बात दिल में ही यारो अब दबाते हैं

मदन मोहन सक्सेना

*मदन मोहन सक्सेना

जीबन परिचय : नाम: मदन मोहन सक्सेना पिता का नाम: श्री अम्बिका प्रसाद सक्सेना जन्म स्थान: शाहजहांपुर .उत्तर प्रदेश। शिक्षा: बिज्ञान स्नातक . उपाधि सिविल अभियांत्रिकी . बर्तमान पद: सरकारी अधिकारी केंद्र सरकार। देश की प्रमुख और बिभाग की बिभिन्न पत्रिकाओं में मेरी ग़ज़ल,गीत लेख प्रकाशित होते रहें हैं।बर्तमान में मैं केंद्र सरकार में एक सरकारी अधिकारी हूँ प्रकाशित पुस्तक: १. शब्द सम्बाद २. कबिता अनबरत १ ३. काब्य गाथा प्रकाशधीन पुस्तक: मेरी प्रचलित गज़लें मेरी ब्लॉग की सूचि निम्न्बत है: http://madan-saxena.blogspot.in/ http://mmsaxena.blogspot.in/ http://madanmohansaxena.blogspot.in/ http://www.hindisahitya.org/category/poet-madan-mohan-saxena/ http://madansbarc.jagranjunction.com/wp-admin/?c=1 http://www.catchmypost.com/Manage-my-own-blog.html मेरा इ मेल पता: [email protected] ,[email protected]

One thought on “कंक्रीटों के जंगल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर भाव !

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