मदन मोहन सक्सेना

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : ये रिश्ते काँच से नाजुक

ये रिश्ते काँच से नाजुक जरा सी चोट पर टूटे बिना रिश्तों के क्या जीवन, रिश्तों को संभालो तुम जिसे

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल/गीतिका : ये कल की बात है

उनको तो हमसे प्यार है ये कल की बात है कायम ये ऐतबार था ये कल की बात है जब

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गीतिका/ग़ज़ल

मैं ,शेर और साहित्यपीडिया

महकता है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही मुहब्बत को निभाने में फिर क्यों सारे झमेले हैं http://wp.me/p7uU2K-1L5 गज़ब हैं

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल (रिश्तों के कोलाहल में ये जीवन ऐसे चलता है )

किस की कुर्वानी को किसने याद रखा है दुनियाँ में जलता तेल औ बाती है कहतें दीपक जलता है पथ

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : कौन साथ ले जा पाया है…

कौन किसी का खाता है अपनी किस्मत का सब खाते मिलने पर सब होते खुश हैं ना मिलने पर गाल

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लेख

करवा चौथ : परम्पराओं का पालन या अँधविश्वास का खेल

करवाचौथ के दिन भारतवर्ष में सुहागिनें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए चाँद दिखने तक निर्जला उपवास रखती है. पति पत्नी का रिश्ता

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