कविता

****पिता****

****पिता****
माँ का हर श्रृंगार पिता।
बच्चों का संसार पिता।।
माँ आँगन की तुलसी है।
दर के वंदनवार पिता।।
घर की नीव सरीखी माँ।
घर की छत-दीवार पिता।।
माँ कर्त्तव्य बताती है।
देते है अधिकार पिता।।
बच्चों की पालक है माँ।
घर के पालनहार पिता।।
माँ सपने बुनती रहती।
करते है साकार पिता।।
बच्चों की हर बाधा से।
लड़ने को तैयार पिता।।
बच्चों की खुशियों के सिवा।
रखते क्या दरकार पिता।।
घर को जोड़े रखने में।
टूटे कितनी बार पिता।।
बंटवारे ने बाँट दिए-
बूढ़ी माँ-लाचार पिता।।
ये हैं मेरे शब्द-सुमन।
लो कर लो स्वीकार पिता।।
डॉ.कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674

2 thoughts on “****पिता****

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    आज तक जितनी कवितायेँ मैंने पड़ी हैं वोह ज़िआदा तर माँ पे लिखी हुईं पड़ी , यह पहली कविता जिस में माता पिता दोनों का किरदार पेश किया गिया है , मन को छू गई यह कविता .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर, डाक्टर साहब. आपकी इस कविता को हम एक पुस्तिका में शामिल करना चाहेंगे, जो हमारे एक मित्र अपने पिताश्री की बरसी पर निकालना चाहते हैं.

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