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मोदी सरकार में हिंदी भाषा व पड़ोसियों के साथ रिश्तों में आये अच्छे दिन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान देश की जनता के साथ अच्छे दिन लाने का वायदा किया था। जिसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत प्रारम्भ कर दी है। हालांकि उन्हें कई कठिन परीक्षाओं में अभी खरा उतरना है। मीडिया की खबरों के अनुसार प्रधानमंत्री स्वयं सुबह दस बजे से ही काम शुरू कर देते हैं। वे स्वयं कड़ी मेहनत व काम को अंजाम दे रहे हैं, वहीं वे इतनी ही मेहनत अपने मंत्रियों व अधिकारियों से भी करवा रहे है। प्रारम्भिक चरण में हिंदी भाषा केे अच्छे दिन आ गये हैं। पड़ोसियों के साथ रिश्तों में एक नया दौर शुरू हो रहा है। हालांकि अभी यह कहना मुश्किल है कि मोदी सरकार का चीन और पाकिस्तान के साथ अच्छे सम्बंधों का सिलसिला कितनी दूर तक जायेगा।

सबसे पहले हिंदी भाषा के अच्छे दिनों की ही बात करनी होगी। यह बहुत ही स्वागत योग्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार जब से सत्ता में आयी है तब से हिंदी को उच्च प्राथमिकता दी जा रही है। शपथग्रहण के तत्काल बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्क देशों के नेताओं से हिंदी में ही वार्ता करने का निर्णय लिया और यह बात भी सामने आयी है कि प्रधानमंत्री विदेशी दौरों में भी हिंदी भाषा का ही प्रयोग करेंगे, जिसमें ओबामा के साथ होने वाली वार्ता भी शामिल है। अभी तक केवल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल में ही कुछ सीमा तक हिंदी को बढ़ावा मिला था। लेकिन अब परिस्थितियां बदली हुई हैं। अटल जी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में हिंदी भाषा में बोलकर हिंदी का मान बढ़ाया था। लेकिन अब बात और आगे बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदी में दिलचस्पी को देखकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी अपने मंत्रालय में हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग करने का निर्णय लिया है। प्रधानमंत्री कार्यालय के कम्प्यूटरों में हिंदी के फोंट डाले जा रहे हैं तथा सभी अधिकारियों व कर्मचारियों को कहा गया है कि हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग हो। यही कारण है कि अब कुछ अधिकारी-कर्मचारी हिंदी सीखने को मजबूर भी हो रहे हैं। उधर गृहमंत्रालय ने एक यह आदेश भी जारी किया है कि सभी ब्यूरोकेट्रस फेसबुक, गूगल गु्रुप जैसी सभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर या ब्लाॅग पर भी हिंदी में अपनी राय जाहिर करें।

ज्ञातव्य है कि सरकार के कई मंत्रालयों, विभागांे और बैंकों के जिन अधिकारियों का ट्विटर, फेसबुक, गूगल, ब्लाॅग, यूट्यूब जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अकाउंट हैं लेकिन ये लोग इन पर हिंदी से परहेज करते हैं और सिर्फ अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं। प्रधानमंत्री अब हर क्षेत्र में अंग्रेजी को हटाना चाह रहे हैं। भारत में अभी तक जो सरकारेें रहीं, वे सब की सब अंग्रेजी मानसिकता की गुलाम बन चुकी थीं। इन सरकारों के नेताओं को लगता था कि हिंदी में बात करना और हिंदी में काम करना मूर्खता और पिछड़ेपन का प्रतीक है। जबकि पूर्ववर्ती सरकारों ने हर बात पर अंग्रेजी का इस्तेमाल करकेे देशवासियों को धोखा देने व बेवकूफ बनाने का काम किया है। हिंदी हमारी मातृभाषा है। हिंदी सर्वस्वीकार्य भाषा है। हिंदी से लोग आसानी से जुड़ते हैं।

हिंदी को सम्मान दिलाने का काम प्रधानमंत्री मोदी के हाथों हो रहा है। हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में स्थान दिलाने की हम बात तो खूब करते थे लेकिन काम कुछ नहीं हो रहा था। मंत्रिपरिषद के छोटे से छोटे फरमान भी पूर्व सरकारें अंग्रेजी में पेश करतीं थी। लेकिन अब हिंदी भाषा के वास्तव में अच्छे दिन आ गये हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्क देशों के नेताओं से हिंदी में वार्ता करके सभी नेताओं व देशवासियों को चैंका दिया था। मोदी का यह सिलसिला भूटान यात्रा के दौरान भी चालू रहा। हिंदी भाषा में भूटान की संसद को संबोधित करके उन्होंने न केवल भूटानवासियों अपितु भारत की हिंदीप्रेमी जनता का भी दिल जीत लिया है। प्रधानमंत्री मोदी की भूटान यात्रा मील का पत्थर साबित होने वाली है।

सामरिक व राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भूटान हमारा एक बेहद अहम पड़ोसी है। उस पर चीन की गिद्ध दृष्टि है। वह भूटान को तिब्बत की तर्ज पर हड़प करना चाहता है। इस समय मजबूत प्रधानमंत्री मोदी के वहां पहुंचने से चीन के प्रयासों को असफल किया जा सकता है। मोदी की भूटान यात्रा का पहला असर दिखलाई भी पड़ गया है। भूटान ने अपने यहां चीन को दूतावास खोलने की इजाजत नहीं दी है। भूटान के प्रधानमंत्री शोरिंग तोब्गे ने कहा कि भूटान में चीन का दूतावास खोलने का कोई सवाल ही नहीं है। उन्होनें मोदी की इस बात का समर्थन किया कि मजबूत भारत उसके पड़ेसियों के लिए अच्छा है। साथ ही उन्होंने भारत के साथ मित्रता की बातों को दोहराया है। यह चीन के लिए भारत की ओर से पहला कूटनीतिक झटका है। उधर पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल वासित ने भी कहा है अब भारत और पाकिस्तान के बीच भी अच्छे रिश्तों का दौर शुरू हो रहा है। पाकिस्तान के साथ व्यापारिक अड़चनें शीघ्र दूर होने के संकेत मिल रहे हैं। हालांकि पाकिस्तान के कट्टरपंथी तत्व अशांति का वातावरण पैदा करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं।

एक बात और सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों के अच्छे दिन अब लद चुके हैं। उन्हें स्पष्ट कह दिया गया है कि वे सुबह 9 बजे तक कार्यालय पर आ जायें तथा कोई भी फाइल लम्बे समय तक पड़ी न रहे। इसका असर दिखलाई भी पड़ रहा है। अधिकारियों की सुस्ती गायब हो चुकी है, अफरा तफरी का माहौल है। अधिकारी जिस तरह से फुर्तीले हो रहे हैं उससे लगता है कि आने वाले दिन देशवासियों के लिए अच्छे ही होंगे। हालांकि अभी देश की जनता चाहती हैं कि महंगाई जल्दी से जल्दी कम हो तथा बिजली संकट से निजात मिले। उम्मीद है कि मोदी के नेतृत्व मंे अच्छे परिणाम जल्दी निकलेंगे। कांग्रेेसी सरकारों के गड़ढे बहुत गहरे हैं, उनको भरने में थोड़ा समय तो लगेगा ही।

One thought on “मोदी सरकार में हिंदी भाषा व पड़ोसियों के साथ रिश्तों में आये अच्छे दिन

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. हिंदी को बढ़ावा देना देश के हित में ही है. हिंदी हमारे देश का गौरव है. अंग्रेजी गुलामी का प्रतीक है. मोदी जी सही कर रहे हैं. ऐसा बहुत पहले किया जाना चाहिए था.

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