कज़ा होनें लगी, अब यहां प्यार में।
मुझको दिल है मिला आज व्यापार में ।
प्यार बिकने लगा, देखो बाजार में।
हर तिजारत में हुश्न की भरमार है
हर गली में मिले अब ये बेकार है।।
नाज़नी जिसको दुनिया कहती यहां-
वो घड़ा मिट्टी का है,अब संसार में।
काग़ज मेें सबकी है हस्ती बिकी,
जवानी यहां सबसे सस्ती बिकी।
हसीनाओं का मजमा है लगने लगा-
कज़ा होनें लगी,अब यहां प्यार में।
वाह खुदा तेरी दुनिया है कितनी हंसी।
कूंचे में आ गयी सारी पर्दानशी।
है कोई ‘राज’ गलियों में फैला हुआ-
नाम शरीफो का लिखा है गुनहगार में
राजकुमार तिवारी (राज)
बहुत अच्छी कविता, राज कुमार जी.