कविता

………..नौकरी

हर नगर में हर शहर मे, मै तुम्ही को ढूंढता हॅू। – 2
मेरी जान जाने कहां तू, दर बदर मैं घूूमता हॅू।

फकत मै ही यहां पर, नेक खुद को कहं रहा हॅू।
मंजिले मकसूद खातिर, मैं यहां पर बह रहा हॅू।।

जुलमो सिमत तो सह चुका, दामन तो आके थाम लो –
दिल मेे लिये तस्वीर तेरी, हर जगह को चूमता हॅू।।
हर नगर में हर ……… दर बदर मै घूूमता हॅू।

जब तलक तुम मुझको, सीने से नही लगाओंगी।
तब तलक इस दुनिया में, आवारा मुझको पाओगी।।

मेरी जान अब मुझ पर, और सितम न ढाओ तुम।
दनदना के एक बार, जिन्दीग मंे आ जाओ तुम।।

दिवाना सब सोच रहे है, जो मै हूं ही नही
बेरोजगारी में यारो, मै नौकरी को ढूढता हॅू।।

मेरी जान जाने कहां तू, दर बदर मैं घूूमता हॅू।
हर नगर में हर शहर मे, मै तुम्ही को ढूंढता हॅू। – 2

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782

One thought on “………..नौकरी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा गीत !

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