क्यों हर कोई परेशां है
क्यों हर कोई परेशां है
दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है
अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा
कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है
किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है
बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है
क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से
दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है
दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है
पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती है
भरोसा खुद पर करके जो समय की नब्ज़ को जानें
“मदन ” हताशा और नाकामी उनसे दूर जाती है
मदन मोहन सक्सेना
अच्छी ग़ज़ल है , मन में ऊंची सोच रखना ही जीवन की निशानी है , उदासीन रहना तो मौत की निशानी है . हर कोई कहता है यह दुनीआं बहुत बुरी है , हम भी इस दुनीआं में बुरे ही होंगे . ना हर कोई बुरा है ना हर कोई अच्छा है . पंजाबी में कहते हैं , मुलक माही दा वस्से, कोई रोवे ते कोई हस्से .
बहुत अच्छी ग़ज़ल.