गीत – खिलने लगा सूखा चमन
घिर गये बादल गगन में, चल पड़ी पुरवा पवन।
पा सुधा की बूँद को, खिलने लगा सूखा चमन।।
गाँववासी रोपने को धान,
खेतों में चले हैं,
देख वर्षा को नयन में,
अन्न के सपने पले हैं,
पड़ रहीं रिमझिम फुहारें, मिट गयी सारी तपन।
पा सुधा की बूँद को, खिलने लगा सूखा चमन।।
आज फिर बालक खुशी से,
नाव आँगन में चलाते,
भीगना लगता सुहाना,
तेज बारिश में नहाते,
आज तो नन्हें सुमन भी, कर रहे हैं आचमन।
पा सुधा की बूँद को, खिलने लगा सूखा चमन।।
देखकर काली घटा,
सूरज गया छुट्टी मनाने,
बया ने भी बुन लिए थे,
कुछ निरापद आशियाने,
इन जुलाहों की कला को, सभी करते हैं नमन।
पा सुधा की बूँद को, खिलने लगा सूखा चमन।।
आपका गीत पढ़कर मन झूम उठा
देखकर काली घटा,
सूरज गया छुट्टी मनाने,
बया ने भी बुन लिए थे,
कुछ निरापद आशियाने,
इन जुलाहों की कला को, सभी करते हैं नमन।
पा सुधा की बून्द को, खिलने लगा सूखा चमन।।
वाह ! वाह !! सुंदर गीत !!! आज के मौसम के उपयुक्त भी.