कविता

गीत – खिलने लगा सूखा चमन

घिर गये बादल गगन में, चल पड़ी पुरवा पवन।
पा सुधा की बूँद को, खिलने लगा सूखा चमन।।

गाँववासी रोपने को धान,
खेतों में चले हैं,
देख वर्षा को नयन में,
अन्न के सपने पले हैं,
पड़ रहीं रिमझिम फुहारें, मिट गयी सारी तपन।
पा सुधा की बूँद को, खिलने लगा सूखा चमन।।

आज फिर बालक खुशी से,
नाव आँगन में चलाते,
भीगना लगता सुहाना,
तेज बारिश में नहाते,
आज तो नन्हें सुमन भी, कर रहे हैं आचमन।
पा सुधा की बूँद को, खिलने लगा सूखा चमन।।

देखकर काली घटा,
सूरज गया छुट्टी मनाने,
बया ने भी बुन लिए थे,
कुछ निरापद आशियाने,
इन जुलाहों की कला को, सभी करते हैं नमन।
पा सुधा की बूँद को, खिलने लगा सूखा चमन।।

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है

2 thoughts on “गीत – खिलने लगा सूखा चमन

  • धनंजय सिंह

    आपका गीत पढ़कर मन झूम उठा

  • विजय कुमार सिंघल

    देखकर काली घटा,
    सूरज गया छुट्टी मनाने,
    बया ने भी बुन लिए थे,
    कुछ निरापद आशियाने,
    इन जुलाहों की कला को, सभी करते हैं नमन।
    पा सुधा की बून्द को, खिलने लगा सूखा चमन।।

    वाह ! वाह !! सुंदर गीत !!! आज के मौसम के उपयुक्त भी.

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