बरसो न मेघा ….
तने खड़े हैं
गुमसुम बादल
क्यूँ न बरसें
गर्मी से तप्त
भू पर जीव-जंतु
आस लगाये
जमीं का प्यार
समझें न बादल
हुए निष्ठुर
रोते किसान
बिन पानी फसल
न हो बुआई
बच्चे व्याकुल
गर्मी करे बेचैन
खुले हैं स्कूल
*********प्रवीन मलिक**********
आपने मौसम के अनुरूप अच्छी हाइकु लिखी हैं. बधाई.
विजय कुमार सिंघल जी आपका सादर धन्यवाद
हाइकू शैली में लिखी गयी ये कविता अच्छी हैं.
धन्यवाद आपका जगदीश सोनकर जी