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वेदों से बड़ी है राम चरित्र मानस ?

क्या रामचरित्र मानस वेदों से अधिक महत्व रखता है? इस समर्थन में एक किस्सा प्रशिद्ध है की काशी में जब पंडितो ने मानस की परीक्षा लेनी चाही तो उसको वेद पुराणों के साथ रख दिया , सबसे नीचे मानस रखा गया,उसके ऊपर पुराण और फिर वेद। ऐसा करके मंदिर के पट बंद कर दिए गए ,सुबह जब मंदिर खोला गया तो मानस सबसे ऊपर था और वेद पुराण नीचे।

इस कहानी से यह बताया जाता है की मानस वेदों से उच्च स्थान रखते हैं, तुलसी दास जी वेदों को मानस से कमतर समझते थे, इसलिए वेदों के पर्यायवाची शब्द ‘श्रुति’ से अपने साहित्य को ऊँचा दर्जा दिलाने की बात भी कर दी ,देखे-

‘ चहुं जुग चंहु श्रुति नाम प्रभाऊ ,कलि विशेष नहीं आन उपाऊ'(बाल कांड, 22/8)

अपने राम चरित्र मानस को वेद सम्मत बताने के लिए कहते हैं
सम जम नियम फूल फल ग्याना, हरि पद रति रस वेद बखाना( बाल कांड, 37/14)

तुलसी दास जी ने अपने राम चरित्र मानस को वेदानुकुल बनाने के लिए तुलसी दास जी मानस में 109 स्थान पर वेद शब्दों का प्रयोग किया यही नहीं तुलसी दास वेदों को भी राम गुण गाने विवश कर देते हैं ,वह लिखते हैं-

सेस सारदा वेद पुराना ,सकल करहीं रघुपति गुनगाना (बाल काण्ड,108/6)

तुलसी बाबा ने इससे भी आगे बढ़ के वेदों को राम के सामने पुरुष (भाट) भेष धर के आने और राम की स्तुति गाने पर विवश कर दिया देखे-

सब के देखत बेदन्ह बिनती किन्ही उदार,
अंतर्ध्यान भय पुनि गए ब्रह्म आगार (मानस, उत्तर कांड 13 /1)

इसके आलावा राम विवाह में भी वेद विप्र का रूप रख के आते हैं और विवाह सम्पन्न करवाते हैं।

‘ बेद सब कहि बिबाह बिधि देहीं ( बाल कांड, 323)

यानि कहने का मतलब यह है की तुलसी बाबा ने अपने राम और मानस से ऊपर ही रखा है, अब साधारण हिन्दुओ के सामने यह विकट प्रश्न आ जाता है की वह किसकी बात माने तुलसी जी की जो कहते हैं की मानस और राम वेदो से बड़े हैं या वेदों के निराकार ईश्वर को माने जो कभी अवतार नहीं लेता?

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

16 thoughts on “वेदों से बड़ी है राम चरित्र मानस ?

  • कमलेश पाण्डेय

    keshav ji,aapne sheershak kaafi vyaapak liya tha aur vivechna aur visleshan atyant chhichhle hain.Hamara kkafi time kharab kiya.Aap naastik bhale n hon,aap apne kuchh jyada gyaani avashya maante hain.Aapne Ram Charit Manas ko Ram Charitra Manas bana diya.Kisi ko kisika naam badalne ka haq nahin hai,yah bhi aapko nahin maaloom.Apni hasiyat dekhkar tippani karo,ho sakta hai ki kuchh achchha likh paao.

  • मूर्खतापूर्ण लेख है आपका केशव जी ..यदि आपका है तो …| पहले तथ्यों का आंकलन कीजिये तदोपरान्त उस समय की वास्तविक स्तिथि की कल्पना कीजिये …उस समय संस्कृत भाषा में लिखी गयी वंदना ही मान्य थी ..और तुलसीदास जी ने पूजा को रामकथा को आम जन मानस तक पहुँचाया …और रामचरितमानस का वेदों के ऊपर आना मात्र इसका संकेत था कि भगवान् किसी भाषा में नहीं बंधे हैं.
    और यदि आप स्वयं को नास्तिक कहते है तो रोज सनातन धर्म पर लेख लिखने का क्या अभिप्राय ?.. ओशो ने कहा था कि नास्तिक व्यक्ति यदि भगवान् की बातें करे तो ऐसा ही है जैसे कोई जन्म का अँधा वसंत का ज्ञान दे रहा हो …
    आपका अभिवृत

    • विजय कुमार सिंघल

      आपका कहना बहुत हद तक सही है अभिवृत जी. हर ग्रन्थ का अपना अपना महत्त्व होता है. हमें उसमें से अच्छी बात ग्रहण कर लेनी चाहिए. हर चीज कि आलोचना करना नकारात्मक रवैया है.

      • केशव

        यदी हर ग्रन्थ अपने आप में आलोचना के काबिल हो तो?

        अच्छी बाते ग्रहण करेंगे तो बुरी बाते किस लिए है ग्रंथो में?

        • विजय कुमार सिंघल

          केशव जी, जो बातें आपको बुरी लग रही हैं, वे किसी को अच्छी भी लग सकती हैं. वे उनके लिए ही हैं.

        • कमलेश पाण्डेय

          aapki baat chhodkar saare aalochna ke kaabil hain,kyonki aap hi sabse jyada kaabil hain.Aapne bahut saare kutark likhe hain jinhe tark saabit kar rahe hain.aap aadhi adhoori baaton [ओशो ने तो समाधी से पहले सेक्स करने के लिए भी कहा था , सेक्स को समाधि की पहली सीढ़ी माना था} aap apne saath ओशो ko bhi kutarki saabit kar rahe hain.Aap Ved,Tulsi aur ओशो kisi ko samajhne ki saamarthya nahin rakhte.Pata nahin kisne aapko yuva sughosh par likhne ki anumati de di.admin should take care of it.

    • केशव

      ओशो ने तो समाधी से पहले सेक्स करने के लिए भी कहा था , सेक्स को समाधि की पहली सीढ़ी माना था ….यदि आप ओशो की बात मानते हैं तो आप ब्रह्मचर्य को कैसे मानोगे?

      🙂

    • केशव

      यदि आपके अनुसार गलत जानकारी इसलिए देना सही है की वह आम बोलचाल में है तो शायद आपको फिर से अपने विचार पर विचार करने की आवश्यकता है।

      पहले ध्यान दीजिये की मैंने लेख में कहा क्या है … तथ्य और तर्क आपके सामने हैं ।
      वेद निराकार ईश्वर की सत्ता स्वीकार करता है , वह अवतारवाद को निरस्त करता है जबकि तुलसी दास जी ने अवतारवाद का समर्थन वेदों से ही करवा दिया और तो और वेदों से राम को पुजवा भी दिया ।

      यदि आपने वेद पढ़े हैं तो आप अवतारवाद को कैसे स्वीकार कर सकते हैं?

      आप मेरे नास्तिक होने पर प्रश्न कर सकते हैं उसी तरह मुझे भी आपके इश्वर पर प्रश्न करने का अधिकार है

  • अजीत पाठक

    वेद धार्मिक ग्रन्थ हैं, जबकि राम चरत मानस एक काव्य है. धूर्तों ने उसको जबरदस्ती धर्म ग्रन्थ बना दिया है. दोनों कि तुलना नहीं हो सकती.

  • विजय कुमार सिंघल

    केशव जी, लगता है कि आपके पास सरिता पत्रिका वालों द्वारा प्रकाशित ‘हिन्दू समाज के पथभ्रष्टक तुलसीदास’ शीर्षक किताब है. उसी में से आप ऐसे लेख देते होंगे. कभी अपनी बुद्धि का भी उपयोग कीजिये.

    • केशव

      मेरे पास मानस है …. और यदि कोई खुली आँखों से मानस पढ़ेगा तो वह भी ऐसा लेख लिख सकता है

      • कमलेश पाण्डेय

        आपके पास मानस है तो भी अपनी बुद्धि का भी उपयोग कीजिये.

  • विजय कुमार सिंघल

    इसमें संदेह नहीं कि गोस्वामी तुलसी दास जी ने अनेक जगहों पर वेदों का ससम्मान उल्लेख भी किया है और कई जगह वेड-विरोधी बातें भी लिखी हैं. वास्तव में राम चरित मानस में बहुत मिलावट है. हमें उसमें से अच्छी बातें ग्रहण करके गलत बातों को छोड़ देना चाहिए.

    • केशव

      यदि सब में मिलावट है तो ऐसे मिलावटी ग्रन्थ समाज में जहर ही फैला सकते है

      • विजय कुमार सिंघल

        मिलावट हर वास्तु और पुस्तक में होती है. किस किस से बचोगे?

      • कमलेश पाण्डेय

        मिलावट से जहर ही नहीं फैलता,amrit bhi banta hai.

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