छुपा है राज ईशा में
घिरे है तन्हाई में हम, बचाने तुम चली आओ।
सोती यादों को जगानें तुम चली आओ।।
घिरे है तन्हाई में…..—–तुम चली आओ
उदासी हर घड़ी रहती, तड़पती रूह मेंरी है-
वो सरगम पायल की सुनानें तुम चली आओ।
घिरे है तन्हाई में………तुम चली आओ
समन्दर है यहां कितने, मगर नाकाम सारे हैं-
तबस्सुम की बूंद को, पिलानें तुम चली आओ।।
घिरे है तन्हाई में……….तुम चली आओ
फिजा मदहोश करती है, नजारे जख्मीं कर देते-
छुपा है राज ईशा में बुलाने तुम चली आओ।।
घिरे है तन्हाई में…….-..तुम चली आओ
सही दूरी नही जाती, बहते अश्क़ रातो दिन-
वे जुल्फो की चादर में, सुलाने तुम चली आओ।
घिरे है तन्हाई में…..-…..तुम चली आओ
बहुत हो गये हिज्र, अब सहना मुहाल है
जिन्दगी मुझको जहां से उठाने चली आओ।।
घिरे है तन्हाई में………. चली आओ
राजकुमार तिवारी (राज)
उर्दू-फारसी शब्दों के साथ उनका अर्थ भी सरल हिंदी में देना चाहिए. कविता अच्छी है.
क्या आप ईसा का प्रचार कर रहे हैं?
गीत अच्छा है, लेकिन शीर्षक पंक्ति का अर्थ समझ में नहीं आया. कृपया स्पष्ट करें.