गीतिका/ग़ज़ल

कुछ तरस खा जिन्दगी

पानी की तरह तू बह रही, ठहर तो जा ए जिन्दगी
अब चला जाता है नही, कुछ तो बता ए जिन्दगी।।

लू के थपेडे सह रहा, अननिगत फाके हुये
तर गला कर दे मेरा, अब तो मेरी जिन्दगी।।

हर बरस बरसात जालिम, आशियां बहा कर ले गयी।
पूस की है रात आई, कुछ तरस खा जिन्दगी।।

सुना है तू कहीं पर, बडी ही खूबसूरत है
यहां भयानक तेरी सूरत, ऐसा क्यू है जिन्दगी।।

नंगे पांव मै चल रहा, काॅटो भरी इस राह पे
कभी फूलों पे चल पायेगें, आज बता दे जिन्दगी।

मुफलिसि दामन से चिपकी, आग चूल्हे में नही
मेरे संग तू भी है भूंखी, ऐसा भला क्यू जिन्दगी।

कहीं भवरें है गुनगुनाएं, कहीं कोयलें हैं कूंकती
यहां है धूल का राज, क्या ऐसी होती है जिन्दगी।।

तू कब सेजेगी कब संवरेगी, अन्त सफर का आया है
आंशुआंे से अरमान बह गये, मुस्कुरा दे जिन्दगी।।

राजकुमारी तिवारी (राजबाराबंकवी)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782

2 thoughts on “कुछ तरस खा जिन्दगी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    तिवारी जी , कविता या ग़ज़ल कहूँ बहुत ही अच्छी है , जिंदगी का बस यही दुखांत है कि यह बीतती चली जा रही है लेकिन हम सुख की आशा करते करते इस दुनीआं को अलविदा कह देते हैं .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

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