कुछ तरस खा जिन्दगी
पानी की तरह तू बह रही, ठहर तो जा ए जिन्दगी
अब चला जाता है नही, कुछ तो बता ए जिन्दगी।।
लू के थपेडे सह रहा, अननिगत फाके हुये
तर गला कर दे मेरा, अब तो मेरी जिन्दगी।।
हर बरस बरसात जालिम, आशियां बहा कर ले गयी।
पूस की है रात आई, कुछ तरस खा जिन्दगी।।
सुना है तू कहीं पर, बडी ही खूबसूरत है
यहां भयानक तेरी सूरत, ऐसा क्यू है जिन्दगी।।
नंगे पांव मै चल रहा, काॅटो भरी इस राह पे
कभी फूलों पे चल पायेगें, आज बता दे जिन्दगी।
मुफलिसि दामन से चिपकी, आग चूल्हे में नही
मेरे संग तू भी है भूंखी, ऐसा भला क्यू जिन्दगी।
कहीं भवरें है गुनगुनाएं, कहीं कोयलें हैं कूंकती
यहां है धूल का राज, क्या ऐसी होती है जिन्दगी।।
तू कब सेजेगी कब संवरेगी, अन्त सफर का आया है
आंशुआंे से अरमान बह गये, मुस्कुरा दे जिन्दगी।।
राजकुमारी तिवारी (राजबाराबंकवी)
तिवारी जी , कविता या ग़ज़ल कहूँ बहुत ही अच्छी है , जिंदगी का बस यही दुखांत है कि यह बीतती चली जा रही है लेकिन हम सुख की आशा करते करते इस दुनीआं को अलविदा कह देते हैं .
अच्छी ग़ज़ल !