गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : ****मेघा रे मेघा**********

उमड़ते घुमड़ते झूमते चले आओ रे मेघ

उष्णता धरा की आकर बुझा जाओ रे मेघ

प्यासी है धरा, बूँद बूँद जल को तरस रही
कोख हो हरी धरा की, जम के बरसो रे मेघ

कारे कारे बदरा दे रहे है बूँदों का प्रलोभन
कण कण धरा का शीतल कर जाओ रे मेघ

बरसो गगन से ऐसे कि भीगे हर तन मन
सजल अँखियों के संग मिल जाओ रे मेघ

हवा भी है व्याकुल उड़ाने को फुहार संग खुशबू
बरसकर कृषक के मुख पर मुस्कान लाओ रे मेघ

“गुंजन” का भी मन मचल रहा भीग जाँऊ सावन में
लगा दो झड़ी सावन की सजन संग आ जाओ रे मेघ ।
Megha re Megha

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

5 thoughts on “ग़ज़ल : ****मेघा रे मेघा**********

  • सुन्दर रचना, लेकिन क्षमा सहित कहूँगा कि शिल्पगत बहुत सी कमियाँ भी है इस रचना में ,माफ़ी चाहूँगा कृपया अन्यथा ना लें… सादर वन्दे…

  • गुंजन अग्रवाल

    bahut bahut shukriya vijay sir ji ….aabhar hu aapki

  • गुंजन अग्रवाल

    aabhar gurmel singh ji ….protsan dene ke liye ,,,,i wll try

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    गुंजन जी , आप बहुत अच्छा लिखती हैं . आगे भी इंतज़ार रहेगा .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर ग़ज़ल. वर्तमान मौसम के अनुरूप.

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