…..ग़ज़ल …….
देखो कैसा चलन हो गया
दिल दुखाना भी फन हो गया
उसने इस दर्जा चाहा मुझे
उस के कब्ज़े में मन हो गया
नींद आँखों से रू-पोश है
उनसे मिलना सपन हो गया
कौन ख्वाबों में आया मिरी
आँख में बाँक-पन हो गया
जिसने चाहीं थीं दो रोटियां
वो ही नज़र -ए -कफ़न हो गया
ए नमिता बता क्या करूँ
क्यूँ खफा अब सजन हो गया
….. नमिता राकेश
नमिता जी , कविता बहुत अच्छी और सरल है , देखो कैसा चलन हो गिया , दिल दुखाना भी फन हो गिया , वाह वाह किया बात है .
shukriya
अच्छी ग़ज़ल !