गीतिका/ग़ज़ल

…..ग़ज़ल …….

देखो कैसा चलन हो गया 
दिल दुखाना भी फन हो गया

उसने इस दर्जा  चाहा मुझे 
उस के कब्ज़े में मन हो गया 

नींद आँखों से रू-पोश है
उनसे मिलना सपन हो गया 

कौन ख्वाबों में आया मिरी 

आँख में बाँक-पन हो गया

जिसने चाहीं थीं दो रोटियां
वो ही नज़र -ए -कफ़न हो गया
ए नमिता बता क्या करूँ
क्यूँ खफा अब सजन हो गया
….. नमिता राकेश

3 thoughts on “…..ग़ज़ल …….

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    नमिता जी , कविता बहुत अच्छी और सरल है , देखो कैसा चलन हो गिया , दिल दुखाना भी फन हो गिया , वाह वाह किया बात है .

  • namita.rakesh@gmail.com

    shukriya

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

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