गीत- ****फूल तुम्हारी राह में****
मैंने चुन-चुन सदा बिछाये फूल तुम्हारी राह में.
फिर आया है कैसे कोई शूल तुम्हारी राह में?
किसी तरह की कोई बाधा
तुम्हें न रस्ते में अटकाये.
मैंने चाहा मार्ग तुम्हारा
सुन्दर-सहज-सुगम हो जाये.
आँसू का जल छिड़का फिर भी धूल तुम्हारी राह में?
मैंने चुन-चुन सदा बिछाये फूल तुम्हारी राह में.
लगता है मेरे प्रयास में
कोई कमी कहीं है अब भी.
पूरी तरह सफलता मैंने
पाई नहीं तभी है अब भी.
तभी परिस्थिति आई है प्रतिकूल तुम्हारी राह में.
मैंने चुन-चुन सदा बिछाये फूल तुम्हारी राह में.
उसके दर पर जाता अब भी
मैं उसको सजदा करता हूँ.
पर अब मैं रोज़ाना उससे
केवल यही दुआ करता हूँ-
कभी न कोई बाधा आये भूल तुम्हारी राह में.
मैंने चुन-चुन सदा बिछाये फूल तुम्हारी राह में.
डॉ.कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674
गीत बहुत अच्छा लगा.
गज़ब की कविता , मज़ा आ गिया , धन्यवाद डाक्टर साहिब .
वाह ! वाह !! बहुत सुन्दर गीत, डॉ साहब. पढ़कर मन प्रसन्न हो गया.