पहली सी वो महब्बत
हुई हो जैसे मुझे फिर से पहली सी वो मुहब्बत
उसके तसव्वुर में मेरा आशिकों सा हाल क्यूँ है
उसके तसव्वुर में मेरा आशिकों सा हाल क्यूँ है
बस इक दफे उसने मुड़ के देखा मुझे,बस मुस्काई थी वो
मेरे सब रफीकों के चेहरे पे फिर मलाल क्यूँ है
बस नाम ही तो पूछा था उसका उसके कुचे में जाकर
मेरे उसके ताल्लुकात पे फिर भी उठते ये सवाल क्यूँ है
मेरे उसके ताल्लुकात पे फिर भी उठते ये सवाल क्यूँ है
अभी आज तो तुम गुज़रे भी नहीं मेरी निगाहों से अधृत
ज़ेहन में आता फिर बार बार तेरा ख्याल क्यूँ है
ज़ेहन में आता फिर बार बार तेरा ख्याल क्यूँ है
बढ़िया.
शुक्रिया..
कविता अच्छी है. पर ईदी मिलने कि बात कुछ अटपटी सी लगी.
जी अब वो ईद भी बड़े शौक से मनाते है|हर त्यौहार में मांगते है उनको उन्ही से| सोचा ईद में भी…
ग़ज़ल पसंद आई.
शुक्रिया जगदीश भाई
अच्छी ग़ज़ल. आपको ईदी मिले न मिले, सहारनपुर वालों को मिल चुकी है.
सहारनपुर वालों को भगवान दुःख सहने कि क्षमता दे और हम बस वो दे दे जिसके लिए उसके दर पे जाते है| शुक्रिया|
आनंद कुमार जी , कविता खूबसूरत है . यह तो हमेशा से होता आया है कि लोग दो दिलों की मुस्कराहट को भी सह नहीं सकते . आप को ईदी मिल जायेगी यह मुझे यकीन है , बस दिल थाम कर रखिये . कविता में मज़ा है .
शुक्रिया भ्रमरा सर जी|उम्मीद हमे भी यही है कि ईदी मिलेगी एक दिन| अब जिसको ख्वाहिश है वो मिले तो बेहतर है…