गीतिका/ग़ज़ल

पहली सी वो महब्बत

हुई हो जैसे मुझे फिर से पहली सी वो मुहब्बत
उसके तसव्वुर में मेरा आशिकों सा हाल क्यूँ है
बस इक दफे उसने मुड़ के देखा मुझे,बस मुस्काई थी वो
मेरे सब रफीकों के चेहरे पे फिर मलाल क्यूँ है
बस नाम ही तो पूछा था उसका उसके कुचे में जाकर
मेरे उसके ताल्लुकात पे फिर भी उठते ये सवाल क्यूँ है
अभी आज तो तुम गुज़रे भी नहीं मेरी निगाहों से अधृत
ज़ेहन में आता फिर बार बार तेरा ख्याल क्यूँ है

माना ईद का जश्न मेरे हिस्से नहीं आता
इक काफिर की फिर भी कुछ मुराद यूँ है

वो मेरी हो जाए इस ईद ये ईदी काफी होगी मेरे रब
मेरी आरज़ू पे मगर ज़माने भर में बवाल क्यूँ है

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10 thoughts on “पहली सी वो महब्बत

  • धनंजय सिंह

    बढ़िया.

    • आनंद कुमार

      शुक्रिया..

    • आनंद कुमार

      जी अब वो ईद भी बड़े शौक से मनाते है|हर त्यौहार में मांगते है उनको उन्ही से| सोचा ईद में भी…

  • जगदीश सोनकर

    ग़ज़ल पसंद आई.

    • आनंद कुमार

      शुक्रिया जगदीश भाई

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल. आपको ईदी मिले न मिले, सहारनपुर वालों को मिल चुकी है.

    • आनंद कुमार

      सहारनपुर वालों को भगवान दुःख सहने कि क्षमता दे और हम बस वो दे दे जिसके लिए उसके दर पे जाते है| शुक्रिया|

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    आनंद कुमार जी , कविता खूबसूरत है . यह तो हमेशा से होता आया है कि लोग दो दिलों की मुस्कराहट को भी सह नहीं सकते . आप को ईदी मिल जायेगी यह मुझे यकीन है , बस दिल थाम कर रखिये . कविता में मज़ा है .

    • आनंद कुमार

      शुक्रिया भ्रमरा सर जी|उम्मीद हमे भी यही है कि ईदी मिलेगी एक दिन| अब जिसको ख्वाहिश है वो मिले तो बेहतर है…

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