गजल- ***तुझको याद करूँ मैं***
जब-जब तुझको याद करूँ मैं.
तन्हा दिल आबाद करूँ मैं.
बंधन है पर चाहत का है,
क्यों खुद को आजाद करूँ मैं
तेरी प्रिय भाषा में अपने,
भावों का अनुवाद करूँ मै.
सपनों की दुनिया में अक्सर,
तुझसे ही संवाद करूँ मै.
जो चाहूँ वो तू दे देता,
क्यों कोई फ़रियाद करूँ मैं?
तुझको देख भुला दूँ खुद को,
फिर क्या उसके बाद करूँ मैं?
डा.कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674
वाह वाह ! गजल अच्छी लगी.
डाक्टर साहिब , ग़ज़ल रीमार्केबल है , मज़ा आ गिया .
बहुत अच्छी ग़ज़ल, डॉ साहब.