कविता

इण्डिया का इग्लैण्ड बनाय द्याब

जब चुनाव लंगीचे आवत है, मन्दिर मुद्दा उठाय दियत।
आजादी वाले दिनन मंे सहीदन की मुरती पोछाय दियत।।
जब चुनाव…………………..पोछाय दियत

फिर कोउ न उका पूंछत है, कबूतर खाली बतलाय रहे।
यह राम की नगरी कहां रही, सत्ता मा आइ कै भुलाय रहे।
जब बत्ती मिलत है न्यातन का, जनता के बत्ती लगाय दियत।।
जब चुनाव…………………..पोछाय दियत

जब तक वाट्य नही परत, घर खंदि डारत हैं आय आय।
जब उनसे काम हमार भवा, तव जूता घिसिगें जाय जाय।।
चकरोट कहींन हम पटवाय द्याब, डमरहि रोड़ बनवाय द्याब।
अतना काम द्खाय द्याब, इण्डियक इग्लैण्ड बनाय द्याब-
सन्झा का महल बनावत है, भोर हुअत गिराय दियत्।
जब चुनाव………………….पोछाय दियत

पहिले लरिका हमार पढिस, बारहुआं ऊ पार किहिस ।
ई साइकिल वाले न्याता फिर, लैप लाप थमाय दिहिस।।
किताबव का अब छोंडि दिहिन, दिन भर फूटू द्याखत है।
कहित है बेटा जाउ पढव, बस लैपलाप चलाय दियत्
जब चुनाव………………….पोछाय दियत

अब लच्छन बिगरैय कै आये, लरिका आइस तमासा पाये।
पढैय लिखैय से मतलब नाहि, ढेलुहन का हैं बैठाये।।
काम काज सब ठप भये अब, लरिका सारे बिगरि गये अब –
कुछु न उमा करि पावत हैं, सीडी खाली चलाय लियत।।
जब चुनाव………………….पोछाय दियत

दर दर लरिका भटकि रहै, पढाई मा सब लटिक रहै।
बिजली सैफई जाय रही, उल्लू बलफ का झांकि रहै।।
दस क्वास दूरि जगनेटर है, दिन भर पता लगावत है-
न जाने उई कहां, खाना दिन मा पावत हैं।
नई मुसीबत मुफ्त बटी है, सारा दिन ई गवाय दियत्।
जब चुनाव……….—-……..पोछाय दियत
राजकुमार तिवारी (राजबाराबंकबी)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782

2 thoughts on “इण्डिया का इग्लैण्ड बनाय द्याब

  • अजीत पाठक

    बढ़िया गीत ! पढ़े लिखे लोगों को नौकरी के आलावा कुछ भी करना अच्छा नहीं लगता.

  • विजय कुमार सिंघल

    मुझे अवधी का ज्ञान नहीं है. फिर भी आपकी कविता समझ में आ रही है. अच्छी लगी.

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