तुमहु बी0 ए0 पास किहेव
तुमहूं बीए पास किहेउ, हम हॅू, एम ए पास किहेन।
डिग्री लियय के चक्कर मा, कउने काम के नही रहेन।।
पढाई करै के पीछे तमाम रूपया, और दिन गवाएं दिहेन –
बप्पा कहिन तो जाय कै कागज, पर झिल्ली चढाय दिहेन।।
पढाई से अच्छा कट्टा रहै, सौ पच्चास दिनरात कमाईत
गाड़ी की कजरी पोंछित तौ, मिस्त्री अब तक बन जाईत।।
भैंसिन ढीक रहै आपन, अब तक दूध बढाय दियत-
पढाई लिखई कै कदर नही, आपन किस्मत फोरि लिहेन।।
हवा भरित गुब्बारा बंेचित, म्याला म्याला घूंमित तौ।
र्याखा देखित भविष्य बताईत, हाथ सबका चूमित तौ।।
इंण्डिया गेट पर मोफली बेंचित, आपन नाम बढाई तौ।
होटल पर केतली मांजित, जेम्सवाट बन जाईत तौ।।
बडे बडे अरमान लिहे, बीए एम ए पास किहेन –
अब छोटेव काम नही मिलत, बेगारी मा ढूंढि रहेन ।।
कुर्ता अउर पाईजामा झाडित, अब तक नेता बन जाईत।
पढे लिखे अधिकारीन का, अब तक अंगुढा देखाईत।।
जीपन मां जौ पहले लटकित, अब तक गाडी चलाय लेयित।
अब तक इंटा गरा करत, हमहूं विल्डिंग बनाय लेयित।।
तुमहूं बीए पास किहेउ, हम हॅू, एम ए पास किहेन।
डिग्री लियय के चक्कर मा, कउने काम के नही रहेन।।़
राजकुमार तिवारी (राजबाराबंकवी)
अवधी भाषा में अच्छी कविता लिखी है. ऐसी ही और भी कवितायेँ पढने की आशा है.
Dear
Jaroor Puri Karenge
मजेदार कविता . भारत में कुछ नहीं बदला , वोही बात जो पुरानी फिल्मों में देखा करते थे , बीए की डिग्री हाथ में लिए , टूटे हुए जूते और जगह जगह आता था no vacancy. जॉब्स पहले से बड़ी है लेकिन साथ ही बड़ी है भारत की आबादी . मतलब पड़े लिखे लोग वहीँ खड़े हैं यहाँ पचास साल पहले खड़े थे . इस पे हंसें या उदास होएं समझना मुश्किल है .
Aaj Ke Daur Me Itna Vikas Huwa Hai Ki Garib Garib Hota Ja Raha Hai Aur Amir Amir Hota Ja Raha Hai Kahne Ko Samanta Ka Vavhar Hai Parantu Visamtayen Samaj Me Havi Hai
पढ़े लिखे लोगों को नौकरी के आलावा कुछ भी करना अच्छा नहीं लगता. आपका यह गीत भी मजेदार है.
Thank You
हा…हा…हा… आपने पढ़े-लिखे बेरोजगारों की बेबसी का अच्छा वर्णन किया है.
Prnam Sir
Ham Hindi Ke Sath Sath Awdhi Bhi Bhej Rahen Hai Awdhi Yesi Bhasha Hai Jike Jariye Samaj Me Vayapt Samasyawon Ka Satik Chitran Kiya Ja Sakta Hai