दो आंसू …
सुनीता बहुत खुश थी आखिर 2 साल बाद उसको अपनी सहेली संजना से मिलने का मौका मिला है ! कितना कुछ है जो उसको संजना से पूछना है उसको बताना है ! आखिर उसकी सबसे अच्छी सहेली जो है संजना ! सुनीता के पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं … खुशी के मारे वो छीलने के लिए मटर ससुर जी को पकड़ा रही है तो अखबार सासू जी को … उफ्फ इतनी खुशी … वो अपने दिल में नहीं समा पा रही है !
खुशी हो भी क्यूँ न .. रमेश ने पहली बार उसे कहीं जाने की इजाजत जो दी है ! वो भी कितनी मिन्नतों के बाद कि संजना की शादी हो जाएगी फिर क्या पता कभी मिल पायें या नहीं .. कितनी बार कहने पर रमेश ने कहा था कि ठीक है लेकिन सुबह जाकर शाम को वापस आ जाना .. यूँ तो सुनीता एक दिन पहले जाना चाहती थी एक आखिरी रात संजना के साथ बिताना चाहती थी क्यूँकि शादी वाले दिन उन दोनों को कहाँ कुछ टाइम मिलेगा अपनी कहने सुनने का … पर रमेश से वो बहस नहीं करना चाहती थी जितनी इजाजत मिली है उतने में ही खुद को खुश कर लिया है !
सारे काम वो फटाफट निपटा रही है कि कल जल्दी उठना है ! तभी अचानक उनकी सास के कमरे से चीखने की आवाज आती है ! सुनीता दौड़कर कमरे में जाती है तो देखती है कि उसकी सास पेट पकड़े जमीन पर बैठी है और रो रही है . . दर्द ज्यादा होने के कारण तुरंत हॉस्पीटल लेकर गये रमेश और सुनीता माँ जी को … ससुर जी घर पर ही यश के साथ रुके .. दर्द के मारे माँ जी की हालत बहुत खराब थी लेकिन हॉस्पीटल जाकर डॉक्टर के चैकअप के बाद पता चला कि गैस की वजह से दर्द था ! कुछ ही देर में दवाई के बाद उनको आराम हो गया और डॉक्टर ने घर जाने की आज्ञा दे दी ! इसी बीच रात के बारह बज गये ! माँ जी ने घर जाकर कहा कि सुनीता बेटा मैं अब बिलकुल ठीक हूँ तुम जाकर सो जाओ …. कल तुम्हें अपनी सहेली की शादी में जाना है !
तभी रमेश ने तुनक कर कहा … माँ इसकी सहेली की शादी कोई जरुरी नहीं है ! सुनीता कल कहीं नहीं जा रही है फिर से आपकी तबियत अगर खराब हुयी तो ….
माँ जी ने कहा- नहीं बेटा मैं बिलकुल ठीक हूँ और डॉक्टर ने कहा ना कि मामूली गैस थी अब सब ठीक है .. सुनीता जा आयेगी उसका बहुत मन है अपनी सहेली से मिलने का …
रमेश- माँ … क्या आप बच्चों सी बात कर रही हैं ! ये नहीं गई तो क्या इसकी सहेली की शादी नहीं होगी ! वैसे भी औरतों की क्या दोस्ती यारी .. आज कहाँ है कल पता नहीं कहाँ होंगीं ! सुनीता का संजना की शादी में जाना इतना जरुरी नहीं जितना आपकी सेहत है …. तभी मोबाइल बजा और रमेश फोन पर बात करने लगा … फोन की बातचीत से पता चला कि रमेश का दोस्त अमन बहुत दिन बाद विदेश से आया है और कल सब दोस्तों ने मिलने का प्लान किया है … और रमेश हँसते हुये कहता है – हाँ यार कल मिलते हैं मैं बिलकुल फ्री हूँ ….
सुनीता मन ही मन सोचती है क्या मुझे अपनी सहेली से मिलने का हक नहीं क्यूँकि मैं एक औरत हूँ … अगर रमेश चाहते तो मैं मिल सकती थी संजना से … पर नहीं ….. मैं तो रमेश के हाथों की शायद कठपुतली हूँ जो वो चाहेगें वही मुझे करना है … मैं खुद से कोई फैसला नहीं ले सकती हूँ ….. यही सोचते हुये दो आँसू उसकी आँखों के कोर से छलकते हैं और सुनीता मुँह फेरकर छुपा लेती है और दिल के दर्द को छुपाकर अपनी दिनचर्या में लग जाती है …..
कहानी अच्छी है. पर इतनी विवश स्त्रियाँ आजकल कहाँ मिलती हैं? वास्तव में तो इसका उल्टा ही होता है. पति अपनी पत्नी से पूछे बिना कहीं जा नहीं सकता और पत्नी को कहीं जाने से रोक नहीं सकता. मैं भुक्त भोगी हूँ.
हमारे समाज में हर तरह का तबका है आज भी बहुत से घरो में रोज नारियां अपमानित होती हैं कैदियों की तरह जीवन व्यतीत करती हैं और जिनका अपना कोई फैसला नहीं होता न ही परिवार के लिए और न ही स्वयं के लिए .. अपने आसपास अच्छा और सुव्यवस्थित है इसका मतलब ये नहीं सभी जगह ऐसा ही हो …. कहीं कहीं आज भी बहुएं सास से डरती हैं और कहीं कहीं सास बहु से … तो हम जो भेदभाव होता है समाज में उससे पूर्णतया कदापि नहीं मुकर सकते … सादर धन्यवाद