कविता

नज़रंदाज़

लगता है आदमी को बनाते वक्त ब्रह्मा-जी जरूर महादेव-जी की
संगत में भाँग खाकर बैठे थे !

आँख में भी बहुत Manufacturing Defects रह गए हैं,
आँख की हर चीज़ बुरी है – जैसे आँखेँ तरेरना, आँखेँ नटेरना, आँख का आना,
आँख का जाना, आँखेँ चुराना, आँखेँ फेरना, तिरछी आँखेँ, आँख की किरकिरी,
आँख मारना, वगैरा- वगैरा…!
हा हा हा हा ….. बिलकुल सही बात …. लेकिन वो क्या है ना इनमें से कोई आस्तीन का सांप नहीं बनता है और फसाद नहीं करवा पाता है ….
कान का कच्चा
कान का बिख होना
ब्रह्मा का पूरे ब्रह्मांड के जीव में
एक Construction Defect है कान बनाना
पलटवार न करो तो दब्बू
दुबकल कह हँसते है
जबाब दो तो
हाँथ में लिए पेट्रोल हो
कह झल्लाते हैं
सांप छुछुंदर गति
हालात पैदा कर देते हैं
दोमुहें खूद जो होते हैं
थोडे मुश्किल होते हैं
नज़रंदाज़
जीने का सीखें अंदाज
खुश रहने का राज
जिसने अपनाया
किया दिलो पर राज

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ