कविता

दूसरे किनारेपर………..

समंदर में उठती
कुछ तरंगें
मानों करती हैं प्रयास
एक किनारे का संदेश
दूसरे तक पहुँचाने का
सफल भी होती हैं कई बार
सह-संबंधों के माध्यम से
किन्तु टूट जाती हैं अधिकतर
बीच में कहीं
तुम भी तो खड़े हो
उसी दूसरे किनारेपर
संभवतः किसी जन्म में
तुम्हें सताया होगा
तुम्हारा दिल दुखाया होगा
दंड स्वरूप बाँध दिया
विधना ने वियोग के मानो
अटूट से पाश में मुझे

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

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