कहानी

कहानी: वही शरारत

अजय उन दिनों काफी चर्चित लेखक बन चुका था, उसकी रचनायें खासकर उसकी कहानियां, कवितायेँ अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित होना एक आम बात थी, उसका जीवन हर मायने में एक साहित्यकार का सा जीवन था, आये दिन उसके प्रशंसकों के फोन या पात्र उसे मिलते रहते थे, उन दिनों मैं अपने स्कूल के रीयूनियन पार्टी की व्यवस्था के बारे में सोच रहा था, करीब १२ साल से हम एक दुसरे से नहीं मिले थे, हम सभी एक दुसरे से फोन, सोशल नेटवर्क आदि अनेकों साधनों से जुड़े तो थे मगर हमारा बैच जितना एक दुसरे को मिलने आतुर था उतना शायद ही कोई और समय का बैच रहा होगा, केंद्रीय विद्यालयों की अपनी शान होती है यहाँ से निकले विद्यार्थी को खरा सोना ही समझा जाता है, फिर वो जंग लगा पीतल ही क्यों ना हो!
करीब करीब कुछ ४५ लोग इस रीयूनियन पार्टी के लिए तैयार थे, वे सब लगभग अब अच्छी पोस्ट पर थे और अपने पैसे से पार्टी भी करना चाहते थे, अधिकतर का उद्देश्य एक दूसरे से मिलकर उनके हाल चाल जानने का था, हमारे अधिकतर साथी इसी जिले और उसके आस पास रह रहे थे, कुछों की शादी भी हो चुकी थी और कुछ अब तक माँ बाप भी बन चुके थे, अजय उनमे से एक था, वो स्कूल के ज़माने से ही साहित्यिक रूचि वाला प्राणी था, अजय स्कूल का सीधा सादा लड़का हुआ करता था, उसकी सिर्फ कुछ ही लोगों से अच्छी दोस्ती थी, थोडा फट्टू सा भी था, मैंने ही उसे फोन करके पार्टी के बारे में बताया था, अजय तब मान गया था!! इसके अलावा मैंने उस समय के अति कुख्यात विद्यार्थियों जो लगभग अब इंजिनियर थे उन्हें भी बुलावा भेजा था, सोम, आनंद, आलोक और राम उनमे से एक थे, अजय को आनंद से बड़ा डर लगता था, स्कूल के दिनों में वो बड़ा उद्दंड बालक हुआ करता था, सोम और आलोक उसके साथी हुआ करते थे, अक्सर वे सीधे सादे जीवों को ही अपनी शरारतों का शिकार बनाते थे, राम उनसे थोडा जुदा था उसकी बदमाशियां बड़ी होती थीं अपने नाम के मुताबिक वो बिलकुल भी नहीं था, उसकी शरारतें हमेशा टीचर्स की नाक में दम करे रहती थीं!
२६ जून को रीयूनियन का समय तय था, मेरी कुछ महिला मित्र (गलत अर्थों में ना लें तो) भी आने वाली थीं, शिवानी, जया, सुरभि और नेहा कुछ चर्चित नाम थे, इस तरह कुछ ४५ से ५० लोगों तक इन सभी के माध्यम से सन्देश जा चुका था, मुझे रीयूनियन का प्रभारी बनाया था तो सारा काम मुझे सौंपा था, मेरे जिम्मे मंच से सबको संबोधित करने और टीचर्स के स्वागत सत्कार का भी जिम्मा डाल दिया था, स्पीच के लिए मैंने उठाकर काम अजय को सौंप दिया था कि भैया तेरा काम है लिखकर देदे मैं बोल दूंगा, अजय तैयार था उसने स्पीच लिख भी ली थी!
रीयूनियन के दिन सुबह से ही मुझे मेरे कुछ करीबी दोस्तों के फ़ोन आने शुरू हो गए थे, मैं ठहरा एक छोटी सी पब्लिशिंग कंपनी का मालिक मुझे मेरे दोस्त उन १२ साल पुराने सवालों के बीच ही खदेड़ लाये थे,’अबे क्या पहन रहा है?, भाई डैशिंग दिखना है, भाई ऐसा पहनूंगा तू वैसा पहन, इम्प्रैशन जमाना है वगैरह वगैरह!!
सागर और आयुष मेरे कारीबी दोस्त थे एक तो सीए था और दूसरा इंजिनियर हो गया था, दोनों अजय से भी भली भांति परिचित थे!
उस दिन अजय अपनी कार से स्कूल कैंपस में घूसा तो जैसे सभी मुड़कर उसे देखने लगे ‘अबे देख आ गया राइटर’, मुझे सागर ने एक धक्का मारते हुए कहा, हम सब आकर गार्डन के पास ही खड़े थे पूरा कैंपस मानो इन ४५ लोगों के आने से फिर पुराने जैसा ही दिखने लगा था, अजय अपनी कार से उतरा और उसके अभिवादन के लिए मैं आगे बढा, मैंने उससे हाथ मिलाया और ख़ुशी से उसे गले भी लगाया… अजय मानो सबको देखकर खुश था, लगभग सभी अपने अपने वाहनों से आये थे, वहां लोकल के भी मेरे दोस्त अपना रुतबा झाड़ने महंगी महंगी कारों से आये थे और एक मैं बेचारा था जो पुरानी पल्सर ही घसीटकर लाया था, अजय कुछ देर हम सबसे घुलामिला और फिर मेरी तरफ लपका, ’अबे ये ले तूने कहा था ना स्पीच लिख लाना ले भाई तेरी स्पीच अब बस स्टेज फाड़ देना….’ अजय जोशीले अंदाज़ में बोला, मेरे अन्दर ऊर्जा का संचार हो गया हो जैसे और मैंने भी बड़े गर्वीले स्वर में कहा ‘बिलकुल भाई….’ हम लोग काफी देर टीचर्स के इन्तजार में बाहर खड़े थे, गर्मी के दिन थे… उसपर लड़कियों की वही उफ़ आह अभी से चालू थी, काफी देर खड़े रहने के बाद दो कारें एक साथ बड़ी तेजी से आयीं… मुझे जिन जीवटों का इन्तजार शायद ये वही थे, पहली कार से चश्मा पहने महाशय आनंद निकले उनके अंदाज को देखते ही कुछों की हंसी छूट गयी और कुछ मुंह बनाने लगे …हुंह बड़ा आया फर्स्ट क्लास इंजिनियर…धीरे से आयुष मेरे कान पर बोला हम लोग बस देख ही रहे थे कि दूसरी कार से आलोक और सोम भी कुछ इसी अंदाज़ में उतरे… मैं फिर उनके स्वागत के लिए लपका…आनंद का मुझसे कोई बैर नहीं था उसने जैसे मुझे कसकर गले लगा लिया और बड़ी नाटकीयता से पेश आया… सोम और आलोक ने भी ऐसा ही किया, मैंने तब सोम से पूछा,’अबे वो नहीं आया?’ सोम बोला अबे आएगा ना काहे टेंशन ले रहा है सब आयेंगे,,,!! और इस तरह फिर टीचर्स का आना शुरू हो गया लेकिन राम अब तक नहीं आया था, मुझे समझ नहीं आ रहा था उसने आने का हाँ बोला था पर नहीं आया था जाने क्या बात थी!
अजय, आनंद सोम और आलोक को देखकर झेंप जाता था, उसे याद था कि इन लोगों की शरारत की वजह से एक बार अजय जैसे सीधे सादे को भी टी सी तक की नौबत आ गयी थी, इन लोगों ने एक बार अपने ही क्लासरूम का दरवाजा बाहर से लगा दिया अन्दर कुछ लोग थे जिन्होंने गुस्से में दरवाजा अन्दर खींचा तो एक आधा दरवाजा ही हाथ में आ गया उस समय बाहर किसी योजना से इन लोगों ने अजय को क्लास के दरवाजे के सामने खड़ा कर दिया था और फिर बाद में सारा इल्जाम अजय पर थोप दिया था, उनकी इस हरकत के बाद अजय अगले एक हफ्ते स्कूल नहीं आया था और घर पर भी खूब डांट पड़ी थी, प्रिंसिपल साहब का फोन घर पंहुचा था वो तो जैसे तैसे पिताजी ने सब संभाला था…… पर इससे भी भयंकर वो राम से डरता था… राम ने एक बार अजय की गाडी ही पार्किंग से उठवाकर स्कूल के पीछे खड़ी करवा दी थी, और फिर शाम तक अजय स्कूल में परेशान होता रहा तब फिर शाम को मैंने जैसे तैसे करके राम से शरारत छोड़ने बोलकर अजय की गाडी दिलवाई थी, इसपर अजय खूब रोया था और बाकी के सब खूब हँसे थे!!
ऐसे किस्से आम थे पुराने हो चुके थे इनसे आगे अब शायद सबकुछ बदल चुका था फिर भी अजय को इन बन्दों से अलग ही भय सा लगता था!!
कुछ ही देर में टीचर्स आ गए और हम कार्यक्रम के लिए अन्दर चले गए काफी चहल पहल थी और सभी लगभग एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश भी थे, मैंने मंच का कार्य संभाला और सबसे पहले टीचर्स का स्वागत सत्कार एक एक करके लड़कियों से गुलदस्ते दिलवाते हुए करवाया, फिर बारी आई स्पीच की मैंने परचा निकला और सभ को नमस्कार करते हुए अजय की लिखी एक बहतरीन स्पीच पढ़ डाली, जोरदार तालियाँ बजीं और फिर शुरू हुआ एक एक कर सबको बुलाने का काम सबसे पहले मैंने लोगों के मन को देखते हुए अजय को ही बुलाया था, उसने काफी देर स्पीच दी, फिर इस तरह धीरे धीरे करके सब आते गए और अपने अपने तत्कालीन कैयों आगे की योजनाओं,पुरानी यादों पर बोलते गए, लगभग सभी के खत्म होने के बाद मैंने प्रिंसिपल साहब जो की हम सबसे बिलकुल भी निजी रूप से परिचित नहीं थे उन्हें स्पीच देने के लिए बुलाया उन्होंने एक अच्छा उदाहरण देते हुए सभी को आशीर्वाद दिया और फिर मैंने कल्याणी मैडम जो हमारे जमाने से वहां टीचर थीं, उन्हें आमंत्रित किया काफी लम्बे भाषण के बाद जोरदार करतल ध्वनियाँ हुयीं और फिर मैंने सबके खाना खाने जाने की घोषणा कर दी….!
उस समय अजय काफी टीचर्स से मिल रहा था और सभी लगभग एक ही बात बोलते, अरे राइटर साहब हम तो आपके मुरीद हैं, हम तो आपके फैन हैं, आप जबरदस्त लिखते हैं आप कमाल लिखते हैं, मैं आपको हमेशा पढता हूँ, वगैरह वगैरह!! तभी एक चौकीदार सबसे कुछ पूछता हुआ बाहर से आया और एक एक कर सबसे पूछने लगा ‘भाईसाहब ये काली वाली इंडिगो कार किसकी है?, ये काली वाली इंडिगो कार किसकी है?’ अजय का ध्यान उसकी तरफ गया पर उस समय वो सभी के बीच में था सबसे बातें कर रहा था, समय देखकर उसने चौकीदार को बुलाया और बोला ‘क्या हुआ वो कार मेरी है?”.,’अरे सर वहां से कार हटानी है वो क्या है दूसरी गाड़ियों को निकलने में दिक्कत हो रही है आप चाभी देदें तो हम हटवा दें..’ इतना कहकर उसने अजय से चाभी मांगी अजय ने चाभी निकाल झट से उसे थमा दी और फिर सबसे बातों में लग गया और खाने पीने में व्यस्त हो गया तभी चौकीदार आया और चाभी उसे थमा गया, अजय उससे ये पूछना भूल ही गया कि उसने गाडी कहाँ पार्क की! किन्तु चौकीदार जल्दी से निकल गया था, जैसे तैसे पार्टी ख़तम हुयी और सभी ने मेरा धन्यवाद दिया साथ ही टीचर्स ने भी मुझे इस सारे कार्यक्रम के लिए धन्यवाद दिया!!
अब एक एक कर सब बाहर निकलने लगे, सभी एक दुसरे से मिलकर ख़ुशी ख़ुशी बाहर आ रहे थे, सब खुश थे और तरह तरह की बातें कर रहे थे, अजय भी इसी कतार में था! सभी से विदा लेते समय उसने जेब में हाथ डाला और एक चाभी निकाली अजय हक्का बक्का रह गया वो तो उसकी गाडी की चाभी थी ही नहीं…. बहुत देर इधर उधर नजर करके वो उस चौकीदार को खोजने लगा, उसे परेशान देखकर मैं उसके पास गया मैंने पुछा.’क्या हुआ अजय परेशान क्यों हो?’ उसने मुझे पूरा किस्सा कह सुनाया, बस फिर क्या था हम लग गए चौकीदार की खोज में बड़ा हंगामा हो गया, “अजय साहब की गाडी चोरी हो गयी… गाडी चोरी हो गयी” बहुत बखेड़ा हो गया…आनंद, आलोक और सोम भी बस चुपचाप सब देख रहे थे मैंने सोम को साइड में लेते हुए पूछा क्यों बे कहीं ये तुम लोगों की कोई कारिस्तानी तो नहीं है?’, सोम बोला’चुप बे…हम लोग अब इंजिनियर हैं ऐसी टुच्ची हरकतें नहीं करते…काफी देर सभी गार्डन के पास खड़े हो गए और मैंने और आयुष ने मिलकर सभी की तलाशी शुरू कर दी, सबकी तलाशी होती थी तो उन सबको बड़ा बुरा लगता था, लड़कियां तो मुझे ही गुस्से में उल्टा सीधा बोल रही थीं… क्या करता सारे प्रोग्राम की जिम्मेदारी मेरी थी अब ये गड़बड़ झाला हुआ तो मेरा क्या दोष था, काफी देर हो गयी पर ना चौकीदार मिला ना, चाभी और ना ही गाडी मिल रही थी…लेखक महोदय की, उन्हें गुस्सा भी आ रहा था, सोच रहा था कि पुलिस को फ़ोन करता पर कल को सब परेशान हो जाते घर वाले, दोस्त, रिश्ते नातेदारों में गाडी चोरी चली गयी ऐसीं बात फैलती तो अच्छी खासी इज्जत का भाजीपाला हो जाता, इस डर और शंका से ही अजय बाबू बस शांत थे उनका जी रोने का होता था लेकिन बड़ा संकट था, इतना बड़ा लेखक भला रोता है क्या सबके सामने?
बहुत देर शोर होता रहा तभी मेरे कान के पास आकर सागर बोला,’अबे वो आ गया!!’
मैं चौका और बोला,’अबे यार……….ये नहीं सुधरेगा का कभी तब भी कमीना था और आज भी कमीना है और मैं सागर के साथ स्कूल के दायीं तरफ चला गया, सामने खड़े सब परेशानी में एक दुसरे का मुंह ताकते थे, कुछ अजय जी को सांत्वना भी देते थे और दिलासा देते जाते थे!!
कुछ ही देर में मैं और सागर वापस आ गये, अजय जैसे खड़ा हुआ और बोला,’अबे कुछ मिला?’ उसके स्वर में परेशानी साफ़ झलक रही थी पर मुझसे रहा ना गया और मैं जोरकर हंस दिया साथ ही सागर भी हंस दिया, और मैंने कहा,’अबे मिल गया……’ हा हा हा हा ….करते हुए हम दोनों हंस रहे थे कि पीछे से चाभी घुमाता हुआ राम निकलकर आया वो भी दोनों हाथ जोडकर सबके सामने खड़ा हो गया और हँसता हुआ अजय की तरफ देखा, अजय बड़े गुस्से में था, चीखता सा बोला, ये क्या मजाक है राम…??’ राम हँसते हँसते हाथ जोड़ता हुआ उसे चाभी पकडाता हुआ बोला, ‘भाई तेरी चाभी मिल गयी…’ इसपर सभी अजय को देखकर थोडा मुस्कराए और फिर अजय की ख़राब हालत देखकर आनंद,सोम और आलोक जोर जोर से हंस पड़े!! राम का ये भारी मजाक आज भी अजय को फिर सहमा गया, अजय ने फिर अपनी चाभी ली और राम ने उसे बताया कि उसकी कार पीछे ही खड़ी कर दी थी ले जाकर जहाँ एक बार उसकी बाइक छिपाई थी, अजय अपनी गाडी निकालने चला गया, अब सब जाने की तैयारी करने लगे कुछ बहुत हँसते थे तो कुछ राम पर खीझते थे, मगर राम की इस एक हरकत ने पूरी पार्टी को मानो यादगार बना दिया था, सभी फिर अपनी अपनी कार में बैठे और चल दिए!!
मैंने भी अपनी गाडी उठाई और स्कूल से निकल गया, जब बाहर पंहुचा तो राम भी अपनी बाइक से था मैं उसे देखकर बहुत देर हँसता रहा हुम दोनों बातें करते हुए आगे बढ़ रहे थे….राम का कहना था की अजय आज भी उतना ही सीदा है और मैं कह रहा था भाई तूने बहुत बड़ा मजाक कर डाला अगली बार वो ऐसी पार्टियों में हमारे बुलाने पर नहीं आएगा,,,, तूने १२ साल पुरानी सारी बातें फिर याद दिला दी…हा हा हा! इस तरह एक चौराहे पर आकर राम दांयें और मैं बाए मुड गया एक दूसरे को बाय बाय करते हुए हम अपने अपने घरों की ओर बढ़ गए!!

____सौरभ कमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

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