कविता

***दिखेगा दूर तक***

हर अन्त के बाद 
उजालों की रफ्तार
देखते ही बनती
तोरण हमेशा ही 
करते हैं स्वागत
आने दो सुबह की
केवल किरण
सब इसी तरह बदलते हुए
दिखेगा दूर तक

—मौन

2 thoughts on “***दिखेगा दूर तक***

  1. अच्छी कविता.

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