कविता

दो क्षणिकाएं

1

लोग यहाँ अलग अलग दशा में बंटे हुए हैं

कुछ गरीब कुछ अमीरी लिए हुए है ।

हताशा कामयाबी की मारामारी 

कुछ हुए कामयाब

कुछ जूझते हुए है

 

 

2

ईश्वर की अनुकम्पा से मिला रत्न एक भारी।

स्वस्थ गुणी इंसान बने यही कामना हमारी।

था नसीब में रत्न अनमोल

समय था विरुद्ध

जननी दृढ विस्वास के आगे विधना हारी ।

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

2 thoughts on “दो क्षणिकाएं

  • विजय कुमार सिंघल

    गहरा अर्थ लिए अच्छी क्षणिकाएं !

    • शान्ति पुरोहित

      आदरणीय विजय कुमार भाई जी प्रेरक टिप्पणी के लिए आभार

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