कविता

आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, 

आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, 
हर एक सुदामा , गरीब बेचारा,
फिरता देखो  मारा मारा ,
कहीं नहीं कोई उसका सहारा 
आओ उसको गले लगाओ, 
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, 
एक द्रोपदी कई दुशासन ,
रो रो कर हो रही है व्याकुल ,
सब चीर हरण को कितने आतुर,
आकर उसकी  लाज बचाओ ,
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, 
गली गली में कंस विचरते, 
भक्तो का संहार वो करते,
नहीं किसी हैं यह डरते,
इन भक्तों के प्राण बचालो,
इनके जीवन में सुख लाओ 
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ,
राधा जैसा प्यार नहीं है, 
गोपियों का  सत्कार नहीं है,
जीने का आधार नहीं है, 
प्यार भी है व्यापार सरीखा,
दिल से दिल को रास  नहीं है,
आओ  प्रेम की ‘रासलीला’ दिखलाओ ,
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, 
कितने अर्जुन तरस रहें है, 
गीता का उपदेश सुना दो,
जैसे बने थे पार्थ सारथी ,
हम को भवसागर पार करा दो, 
युग बदलेगा , हम बदलेगें, 
आओ ज्ञान की ज्योति  जलाओ ,
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, 
प्रभु तुम से ही है आस हमारी 
तुम से है अरदास हमारी, 
प्रभु तुम आशा की किरण बनोगे,
जन जन का उद्धार करोगे,
आकर सुदर्शन चक्र चलाओ ,
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ,  
गौ रक्षा का धर्म निभाकर 
सच्चे मन से ध्यान लगा कर,
बन कर सच्चे गौशाला सेवक 
अपना कर्तव्य निभाएंगें हम, 
आकर नव जागृति का दीप जलाओ 
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ,  
 –जय प्रकाश भाटिया 
  जन्माष्टमी २०१४. 

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

One thought on “आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, 

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता, भाटिया जी।

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