कविता : नारी प्रधान देश महान
एक दिन स्वप्न में मैं पहुँच गया ऊपर
वहां मैंने देखा एक बहुत बड़ा नारी घर
वहां पहुँच कर मैं करने लगा विचरण और मिली एक बुजुर्ग महिला
उसने क्या स्वागत और आगे बढ़ा बातों का सिलसिला
उसने बताया ये वो नारी घर है
जिसमें हजारों बच्चियां, छात्राएं, नारियां चढ़ गयीं सूली
भारत के महान प्राणियों ने ले ली जिनकी बलि
बोली- सुना था भारत महान है, नारी प्रधान है
नारी का होता बहुत सम्मान है
गौ गंगा पृथ्वी भी कहलाती है माता
अर्थात नारी सम्मान यहाँ से ज्यादा कोई नहीं है पाता
यही सोचकर हमने की थी प्रभु से प्रार्थना
हे प्रभु नारी जन्म दो तो भारत की धरती पर ही उतारना
और प्रभु ने पूरी भी की हमारी मनोकामना
इसके बाद उसने दिखने शुरू किये पैदा होने से जवानी फिर बुढापे के चित्रण
रोम रोम हिल गया कर रहा हूँ उसी का वर्णन
सबसे पहले उसने दिखलाई एक बंद कोठरी
जिसमें हजारों छोटी छोटी कन्यायें थी भरी
मैंने पूछा ये कौन है न देखती है न सुनती है, न है बोलती
ये यहाँ पर कैसे आई, किसने की इतनी बड़ी गलती?
बोली- पढ़े लिखों के हैं कारनामे महान
६-६ महीनों के कोख में ही हर लिये प्राण
इसके बाद उसने ८-१० वर्ष की १५-२० कन्याओं से मिलवाया
जिन्हें भारत के नरभक्षियों ने यहाँ था भिजवाया
बोली निठारी में इन नरपिशाचों ने कर दिया कमाल
इन मासूमों की नोच नोचकर खा गए खाल
और कन्याओं का भी किया वो हाल
हैवानियत की पैदा कर दी एक नयी मिसाल.
इतने वीभत्स तरीके से हरे जाते हों जहां प्राण
वो है हमारा नारी प्रधान देश महान
इसके बाद उसने मिलवाया और बताया ये हैं मेरी सैकड़ों सहेली
दहेज़ के खूंटे पर जो हो गयी बलि
कुछ को जलाकर मार डाला, कुछ को गला घोंटकर
और कुछ को इतना सताया कि उसने समय से पहले ही त्याग दिए अपने प्राण
ये है हमारा नारी प्रधान देश महान
इसके बाद मैंने देखि एक पूजा स्थली
जहां पर कुछ नारियां कर रही थी यह प्रार्थना
कि हे प्रभु अगर हमें नारी जन्म दो तो अब भारत की धरती पर मत उतारना
यही पर टूट गया मेरा सपने का क्रम
ऐसा लगा सब सत्य है नहीं है कोई भ्रम
अशोक भाई , आप ने भारती नारी के हालात को व्यंग्मई तरीके से वर्णन किया जो कडवा सच है . हम अपनी संस्कृति की सराहना करते नहीं थकते लेकिन जो नारी की बेइजती हम ने की है शाएद ही कोई देश करता हो . सती की रसम कितनी भिआनक थी . जिन अंग्रेजों को हम कोसते नहीं थकते उन्होंने ही कानून पास करके बंद किया . विधवा की हालत किया थी ? वोह शादी नहीं थी करवा सकती . अब बेतिआं माँ के पेट में ही मार रहे हैं . दाज के लालची जो ज़ुल्म लड़किओं पर ढा रहे हैं वोह हम से छुपा नहीं . किचन में गैस से मार रहे हैं . लड़के लड़किओं में अनुपात इतना बड गिया है कि जब अपने बेटे की शादी नहीं होती तो पशुओं की तरह किसी गरीब की बेटी को कुछ सिक्के दे कर खरीद लाते हैं .अब जो बलात्कार हो रहे हैं यह किस धर्म में लिखा है . धर्म आस्थानों में जा कर हम पाखंड करते हैं . अब तो बहुत से धर्म गुरु भी सुर्खिओं में आने लगे हैं . यह सब डब्बल स्टैण्डर्ड नहीं तो और किया है ?
बहुत बहुत धन्यवाद, भाई साहब गुरमेल सिंह जी. सही कहते हैं आप. धर्म के नाम पर बहुत पाखंड और अनाचार हो रहा है.
बहुत करारा व्यंग्य किया है आपने भारत महान पर ! बधाई !!
धन्यवाद, विजय जी. यह व्यंग्य नहीं दिल की बात है.