धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

खजुराहो की कलाकृतियाँ और भारतीय संस्कृति

कुछ लोगो द्वारा समलेंगिकता के समर्थन में खजुराओ की नग्न मूर्तियाँ अथवा वात्सायन का कामसूत्र को भारतीय संस्कृति और परम्परा का नाम दिया जा रहा हैं जबकि सत्य यह हैं कि भारतीय संस्कृति का मूल सन्देश वेदों में वर्णित संयम विज्ञान पर आधारित शुद्ध आस्तिक विचारधारा हैं।
KHAJURAHO
भौतिकवाद अर्थ और काम पर ज्यादा बल देता हैं जबकि अध्यातम धर्म और मुक्ति पर ज्यादा बल देता हैं । वैदिक जीवन में दोनों का समन्वय हैं। एक ओर वेदों में पवित्र धनार्जन करने का उपदेश हैं दूसरी ओर उसे श्रेष्ठ कार्यों में दान देने का उपदेश हैं । एक ओर वेद में भोग केवल और केवल संतान उत्पत्ति के लिए हैं दूसरी तरफ संयम से जीवन को पवित्र बनाये रखने की कामना हैं । एक ओर वेद में बुद्धि की
 शांति के लिए धर्म की और दूसरी ओर आत्मा की शांति के लिए मोक्ष (मुक्ति) की कामना हैं। धर्म का मूल सदाचार हैं। अत: कहाँ गया हैं आचार परमो धर्म: अर्थात सदाचार परम धर्म हैं। आचारहीन न पुनन्ति वेदा: अर्थात दुराचारी व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। अत: वेदों में सदाचार, पाप से बचने, चरित्र निर्माण, ब्रहमचर्य आदि पर बहुत बल दिया गया हैं जैसे-

यजुर्वेद ४/२८ – हे ज्ञान स्वरुप प्रभु मुझे दुश्चरित्र या पाप के आचरण से सर्वथा दूर करो तथा मुझे पूर्ण सदाचार में स्थिर करो।
 ऋग्वेद ८/४८/५-६ – वे मुझे चरित्र से भ्रष्ट न होने दे।
 यजुर्वेद ३/४५- ग्राम, वन, सभा और वैयक्तिक इन्द्रिय व्यवहार में हमने जो पाप किया हैं उसको हम अपने से अब सर्वथा दूर कर देते हैं।
 यजुर्वेद २०/१५-१६- दिन, रात्रि, जागृत और स्वपन में हमारे अपराध और दुष्ट व्यसन से हमारे अध्यापक, आप्त विद्वान, धार्मिक उपदेशक और परमात्मा हमें बचाए।
 ऋग्वेद १०/५/६- ऋषियों ने सात मर्यादाएं बनाई हैं. उनमे से जो एक को भी प्राप्त होता हैं, वह पापी हैं. चोरी, व्यभिचार, श्रेष्ठ जनों की हत्या, भ्रूण हत्या, सुरापान, दुष्ट कर्म को बार बार करना और पाप करने के बाद छिपाने के लिए झूठ बोलना।
 अथर्ववेद ६/४५/१- हे मेरे मन के पाप! मुझसे बुरी बातें क्यों करते हो? दूर हटों. मैं तुझे नहीं चाहता।
 अथर्ववेद ११/५/१०- ब्रहमचर्य और तप से राजा राष्ट्र की विशेष रक्षा कर सकता हैं।
 अथर्ववेद११/५/१९- देवताओं (श्रेष्ठ पुरुषों) ने ब्रहमचर्य और तप से मृत्यु (दुःख) का नष्ट कर दिया हैं।
 ऋग्वेद ७/२१/५- दुराचारी व्यक्ति कभी भी प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता।

इस प्रकार अनेक वेद मन्त्रों में संयम और सदाचार का उपदेश हैं।

खजुराओ आदि की व्यभिचार को प्रदर्शित करने वाली मूर्तियाँ , वात्सायन आदि के अश्लील ग्रन्थ एक समय में भारत वर्ष में प्रचलित हुए वाम मार्ग का परिणाम हैं जिसके अनुसार मांसाहार, मदिरा एवं व्यभिचार से ईश्वर प्राप्ति हैं। कालांतर में वेदों का फिर से प्रचार होने से यह मत समाप्त हो गया पर अभी भी भोगवाद के रूप में हमारे सामने आता रहता हैं।

डॉ विवेक आर्य

2 thoughts on “खजुराहो की कलाकृतियाँ और भारतीय संस्कृति

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मुझे तो ऐसा लगता है कि उस समय भारत आर्थिक तौर पर इतना मज़बूत हो चुक्का था कि आम लोग खुशहाल थे . जब खुशहाली आती है तो साथ बुरी आदतें भी आ जाती हैं . आज ही देख लें ! अभी कुछ वर्ष पहले भारत के आर्थिक हालात इतने अछे नहीं थे , अब लोगों के पास पैसा बहुत हो गिया है , और पब्ब बन गए हैं , डांसिंग बार्ज़ खुल गए हैं , सैक्स का रुझान बड़ा है . लद्किआन भी शराब और डरग्ग लेने लगीं हैं . K.M. Panikar की A brief survey of indian history पड़ें तो पता चलेगा कि एक समय था जब भारत का सुनैहरी ज़माना था . उस समय भी शराब खाने थे जिस में लोग सोम रस और सुरा का सेवन करते थे . कामसूत्र वात्सएंन के दुआरा लिखने का कोई मतलब हो सकता है . इस में से एक बात साफ़ है कि जैसे हम आज बच्चों को सैक्स एजुकेशन देने की बात कर रहे हैं उस ज़माने में कामसुतर लिखने का मकसद यही होगा किओंकि उन में यह भी बताया गिया है कि आदमी को किन किन औरतों के साथ संजोग नहीं करना चाहिए . मेरा खियाल है वोह समय बहुत एडवांस रहा होगा . मुगलों के हमलों के बाद ही भारती समाज में तब्दीलिआन आणि शुरू हुई .

  • विजय कुमार सिंघल

    आपका कहना सत्य है, डाक्टर साहब. खजुराहो की तथा ऐसी ही अन्य मूर्तियाँ वाम-मार्गियों और जैनियों की देखादेखी कुछ पोंगा-पंडितों ने बनवाई होंगी और राजाओं ने उनके लिए आर्थिक सहायता की होगी. ये मूर्तियाँ किसी भी तरह हिन्दू (या भारतीय) संस्कृति का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं.

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