सामाजिक

भारतीयों के कथनी और करनी में फर्क क्यूँ?

ऐसा क्यों है की भारतीयों जैसा कहते हैं वैसा मानते नहीं हैं, जिन आदर्शो की बाते वे सार्वजानिक
रूप से दुनिया के सामने करते हैं निजी जीवन में उन्ही आदर्शो के उलट काम करते हैं।
जैसे-
1- रोमेंटिक फिल्म यानि लड़का लड़की प्रेम आधारित फिल्मे भारत में खूब हिट होती हैं जिससे साफ़ जाहिर होता है की भारतीय लोग प्रेम / मुहब्बत को ज्यादा पसंद करते हैं ।
पर जब इन्ही प्रेम पसंद लोगो के खुद के लड़का/ लड़की किसी दुसरे से प्रेम करने लग जाते हैं तो यही लोग इतने क्रोधित होते हैं की उनका क़त्ल तक कर देते हैं।

2- भारतीय हमेशा शौच ( साफ सफाई आदि स्वक्षता) की बाते करते हैं पर आदत यह है की कूड़ा घर के बाहर जंहा खाली जगह देखी डाल दिया। जंहा थोड़ी सुनसान दीवार देखी वंही हल्का हो लिए। गुटका पान खा के जंहा तहा धूकना तो जैसे जन्म जात हक़ हो भारतीयों का।

3- कहने को तो ‘विश्व गुरु’ कहते हैं पर आधे से अधिक जनता निरक्षर है।

4- कहने को तो ‘ बसुधैव कुटुम्बकम’ पर सड़क पर कितना ही दीन हीन व्यक्ति पड़ा रहे उससे बचकर ऐसे निकल जाते हैं जैसे वह कोई जीता जागता इन्सान न होक कोई कूड़े का ढेर पड़ा हो।

5- हर भारतीय स्वदेशी अपनाने का नारा लगाये रहता है ,पर खुद के घर में ऐसी विदेशी चीजे होंगी की अंग्रेज भी नहीं समझ पायेगा की वह अपने घर में है या भारतीयों के घर में। चड्डी से लेके सूट तक और संडास की सीट से लेके लक्स्जरी कार तक सब अंग्रेजी स्टाइल।

ये तो केवल कुछ मुख्य बाते थी,कोई भी विदेशी आसनी से ऐसी बहुत सी बातो के भारतीयों के जीवन में देख सकता है जो कहने और करने में सर्वदा भिन्न है रहती हैं ।यानि भारतीयों के आदर्शो में और कार्यो में एक दम उलट बाते मिलती हैं।

चलिए ….. अब जोर से बोलिए … मेरा भारत महान :))

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

One thought on “भारतीयों के कथनी और करनी में फर्क क्यूँ?

  • विजय कुमार सिंघल

    कथनी और करनी में अंतर केवल भारतीयों में नहीं लगभग सभी वर्गों और देशों में होता है. इस अंतर को कम कैसे किया जाये, इस बात पर विचार होना चाहिए.

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