लघुकथा

लघुकथा — गरीब कौन

”  मसाले का  ,कपडे धोने का पत्थर लाया हूँ  बाई ….”  सामने के घर पर घंटी बजाकर  एक आदमी ने कहा .
” अच्छा ,कितने का है भैया ”
” 150रू  का सिल बटना है , 200 रू कपडे का ”
” सिल दे दो पर सही पैसे बताओ , यह बहुत ज्यादा है ”
” नहीं बाई , बोनी का समय है , फिर काला पत्थर भी  है, तोड़ कर बनाना पड़ता है , सिर्फ मेहनत का पैसा ही बोल रहा हूँ , ठीक  है 125 में ले लो ”
” नहीं 80 रू में दो ”
” नहीं पुरता बाई घर चलाना पड़ता है  ,घूम घूम कर बेचता हूँ , 2 ही तो है मेरे पास, भाजी पाला भी तो आज महंगा हो चुका   है  ”
”  नहीं नहीं देना हो तो दो , नहीं तो  रहने दो ”
” बाई तुम नौकरी वाले हो,  बड़े बंगले  में रहते हो , क्या…… 10-15 रू के लिए ऐसा मत करो ”
” हो भाई , नौकरी है तो क्या हुआ , हमारे पीछे बहुत खर्चे व  काम रहते है , इससे ज्यादा नहीं दे सकते ”
” बाई जाओ 100 में ही ले लो  ….थोडा सा मायूस होकर बोला ”
उसने 100 रू दिए उस आदमी को और गौरान्वित भाव आये चहरे पर जैसे किला  फतह कर लिया हो . उस आदमी ने रू लिए और जाते जाते कहा —-
” बाई , सुखी रहो , मै  सोचूंगा  बहन के घर गया था , तो  50 रू का  मिठाई फल दे कर आया , तुम के लेना मेरी तरफ से “.
और वहां से चला गया . अब गरीब कौन  वह पत्थर बेचने वाला या बंगले वाली ,यह सोचने वाली बात है .

——शशि पुरवार

4 thoughts on “लघुकथा — गरीब कौन

  • शशि बहन , विजय भाई का कहना ठीक है , लोग जब टीवी या डीवीडी खरीदने जाते हैं तो पता नहीं कितने सौ का प्रौफिट बना कर दे आते हैं . जब सिनिमा जाते हैं तो कोई मोल तोल नहीं होता लेकिन गरीब के साथ कियों ऐसा करते हैं . हम जब भारत जाते हैं तो रिक्शे वाले या और गरीब वर्ग जितने वोह मागता है उस से कुछ ज़िआदा भी दे देते हैं कारण यह कि हम ने गरीबी देखि हुई है लेकिन हमारे ही दोस्त रिश्तेदार हमारी इस बात से चिड जाते हैं और कहते हैं , तुम तो वापिस इंग्लैण्ड चले जाओगे लेकिन यह लोग हम से भी ज़िआदा मांगेंगे . उन की इस बात से हमें दुःख होता है .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कहानी, शशि जी. गरीब फेरीवालों से इतना मोलभाव करना अनुचित है. बड़ी बड़ी दुकानों पर हम बिना मोलभाव किये पैसे दे आते हैं और उसमें अपनी शान समझते हैं. यह मूर्खता है.

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