गीतिका : काव्य का है प्यार हिन्दी
हिन्द का श्रृंगार हिन्दी
भाव का है सार हिन्दी
देव की नगरी से आई
ज्ञान का भंडार हिन्दी
लोकगीतों में बसी यह
है मधुर संसार हिन्दी
डाल पातें झूमती सी
गा रहीं मल्हार हिन्दी
छंद गजलों में महकती
काव्य का है प्यार हिन्दी
भाषणों संभाषणों में
मंच का आभार हिन्दी
बोलने की चाहते हैं
क्यों लगे फिर भार हिन्दी
बाँध देती एक सुर में
प्रांत को हर बार हिन्दी
गा रही सरगम बनी यह
है सफल उद्गार हिन्दी
शिल्प को जब गढ़ रही हो
तब लगे कुम्हार हिन्दी
साथ में उर्दू मिले तो
नज़्म का है हार हिन्दी
यह विदेशों में रमी है
सच बड़ी फ़नकार हिन्दी
मान्यता प्रतियोगिता में
कर रही उपकार हिन्दी
जा बसी हर गंध में यह
राज्य का उपहार हिन्दी
मूल संस्कृत में जमा के
है विटप विस्तार हिन्दी
विष्णु ऊँ ब्रम्हा विराजें
ईश का दरबार हिन्दी
लेखनी में जा बसी है
बन रही रसधार हिन्दी
भर रही है बाजुओं में
वीर का हुंकार हिन्दी
राह, माना है कँटीली
चल पड़ी साभार हिन्दी
शादियाँ त्योहार में भी
गूँजती सौ बार हिन्दी
अंग्रेजी जब से घुसी है
कर रही तकरार हिन्दी
जीत हासिल हम करेंगे
है विजय आसार हिन्दी
प्रेमियों की पात है ये
है मधुर इज़हार हिन्दी
शान से बोलें इसे तो
देश का उपहार हिन्दी
पीर इसकी भी सुनो तुम
माँगती अधिकार हिन्दी
अब विमानों में सजी है
बादलों के पार हिन्दी
*ऋता शेखर ‘मधु’*
अति सुन्दर कविता. बधाई ‘मधु’ जी.
मधु बहन , बहुत अच्छी कविता . वाकई हिंदी हर जगह छा गई है , फिल्मों ने और भी बढावा दिया है .