मौसम भी है खामोश
मौसम भी है खामोश
पंखुरियों के अंक में हैं
नन्ही नन्ही ओस
भींगा भींगा सा ..
मौसम भी हैं खामोश
खोयी सी लगती हैं पगडंडियाँ
रास्ते भी पथ भूले भूले से
लगते हैं जैसे वे सब भी
नींद में हो बेहोश
न जाने पर सुनहरी किरणे
किसे रही हैं खोज
सूनेपन की रेत बिछी हैं हर ओर
क़ाला अंधियारा धीरे धीरे छंट गया
धुली धुली सी लग रही हैं भोर
सागर में ..
आती हुई तरंगे कर रही हैं शोर
मन करता हैं बढ़कर ..
थाम लूँ लौटती हुई लहरों के
सिंदूरी आंचल का छोर
पंखुरियों के अंक में हैं
नन्ही नन्ही ओस
भींगा भींगा सा ..
मौसम भी हैं खामोश
किशोर कुमार खोरेंद्र