अविरल
अविरल
जल प्रपात सा निरंतर झरते रहना
मेरे सूने मन में अविरल गूंजते रहना
कॅटिली झाड़ियों से होकर गुजरु जब
नर्म पत्तियों की नोको सा चुभते रहना
घाटियों में छाया है दूर तक घना कोहरा
एक धुँधले साए सा दिखलाई देते रहना
बहुत मोड़ आते है जीवन की लंबी राह में
किसी संकरे मोड़ सा मुझसे मिलते रहना
अस्त हो रहा है जाते जाते सूरज पर्वत के पीछे
जगमग तारो सा मेरी आँखों में उभरते रहना
किशोर कुमार खोरेंद्र
बहुत अछे भाई साहिब .
shukriya gurmel singh bhamra ji
बहुत खूब! अच्छे बिम्ब.
shukriya vijay kumar singhal ji