कविता

हाइकु

 

निकल पडे
दुनिया अनजान
मिले अपने

तराशा जीव
सीखा जीवन मंत्र
बना मानव

बुजुर्ग वक्ता
खालिस नसीहत
यौवन धन्य

धर्म बिसात
मानव बंटवारा
गहरी घात

उम्र सिखाती
सम विषम पल
जीवन सत्व

One thought on “हाइकु

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी हाइकु कवितायेँ.

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