“पुल”
“पुल”
तुम कहते तो मै वहीं और रुक जाता
प्यार के सागर मे गहरे तक डूब जाता
रेल चली तो रफ़्तार से चलती ही गयी
मन ने सोचा काश मैं वही छूट जाता
जब जब लंबी लंबी सुरंग आती गयी
खुद से कहा उससे मैं कैसे रुठ जाता
करीब आ गया जब मेरा अपना शहर
लौटती पटरियों संग मै कैसे घूम जाता
अब अजनबी लगती है यहाँ की सड़के
आशिक हूँ ,यदि पुल होता तो टूट ज़ाता
किशोर कुमार खोरेंद्र
बेहतर कविता!
dhnyvaad vijay kumar singhal ji