लघुकथा

लघुकथा : कुत्ता

हमारे घर के पास एक मरियल कुत्ता पड़ा रहता है, अक्सर एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठा रहता है. उसके बाल पूरे जले हुए हैं (कभी किसी भयंकर आग में कूद गया होगा या कहीं कचरे में पड़ा होगा तो किसी ने आग लगा दी होगी) और उसकी चमड़ी साफ़ नजर आती है, पूरा शरीर एक दम गन्दा सा लगता है, कभी डरावना सा. पर वो कुत्ता है बड़ा गुस्सैल टाइप का…इतना कि किसी नए शख्स को मोहल्ले में देखता है तो उस पर भौकना शुरू कर देता है, कुछ को तो मोहल्ले के गेट तक छोड़कर आया है, कुछ की धोती ऐसी गीली की है कि वे दोबारा लौटकर मोहल्ले में नहीं आये…

मुझे याद है उन दिनों वो कुत्ता कहीं गायब था. इसी दौरान एक बार एक बड़े साधू महात्मा, पीताम्बर धोतीधारी ऊपर से नीचे तक एकदम गोरे चिट्टे और एकदम लम्बे चौड़े, मस्तक पर लम्बा सा तिलक लगाये हमारे मोहल्ले में आये. उनका आगमन करने पूरा मोहल्ला एकत्रित हो गया, सभी ने फूल मालाओं से स्वामी जी का स्वागत सत्कार किया. कुछ ने बड़े चरण पखारे. उसी बड़े से पीपल के पेड़ के नीचे स्वामी जी का आसन लगाया गया था, उस जगह को अच्छी तरह साफ़ सुथरा किया गया था.

स्वामी जी का बड़ा सा तख़्त था. बाबाजी वहीँ बैठकर मन्त्र फूंकते, भाषण देते थे. बाबाजी के शिष्य उनसे बड़ा डरते थे, वो थे भी बड़े क्रोधी स्वाभाव वाले साधू महाराज, दुखयारी जनता उन्हें अपना दुःख बताती और बाबाजी बताते सबको इलाज, एक से बढकर एक नियम पालन बताते, स्वामी जी बहुत बड़े ज्ञानी मालुम होते थे, प्रकांड विद्वान् सरीखे लगते. कुछ दिनों तक उनका कार्यक्रम बड़ी धूम से चला वो भी नि:शुल्क लेकिन एक दिन से उनके मंच तक जाने के लिए टिकट बिकने लगा और अब दूर दूर से लोग आते और टिकट खरीदकर बाबाजी के दर्शन करते अपनी समस्या बताते और उपाय पाते!

एक दिन सुबह सुबह एक दीन दुखियारा सा बूढा बाबा जी के पास आया उसके पास टिकट का पैसा नहीं था और वो था बड़ा दुखी… बाबाजी के मंच तक आने से पहले गेट पर ही चेलों ने उससे बड़ी बहस करनी शुरू कर दी, बाबा जी भक्तों को हाथ हिला हिलाकर अभिवादन कर रहे थे लेकिन इधर ग्राहक ना आता देख स्वामी जी का पारा भी चढ़ गया वो दूर से ही चिल्लाये, ‘क्यों….रे……’ ‘क्यों….रे……’ ‘क्यों….रे…..कहाँ मर गए?.’ दो तीन बार ऐसा चिल्लाने पर एक शिष्य बाबाजी के पास आया और पूरा हाल सुनाया.

अबकी बाबाजी बड़े ताव में आ गए, बूढ़े के पीछे भी बड़ी भीड़ जमा हो गयी थी, अपने तख़्त पर खड़े होकर ही स्वामी जी जोर जोर से उछलकर अपना क्रोध प्रकट करने लगे, इधर शिष्य भक्तों को “ये बाबाजी का तांडव है” ऐसा बताने लगे, बस चार पांच बार स्वामी जी ने छलांग मारी थी कि तभी तख़्त के पीछे से कुत्ते के भौकने की आवाज आई और वही खुजेला कुत्ता तख़्त के नीचे से निकला, स्वामी महाराज कुछ समझ पाते कि कुत्ते ने दांतों से स्वामी जी की धोती पकड़ ली और बाबाजी भागे डर के मारे थरथराते हुए… भीड़ को लांघते हुए बाबाजी सबकुछ छोडकर डर के मारे बड़ी जोरकर भागे ‘बाबाजी मुंह से चिल्लाते जाते ‘पिशाच…पिशाच…!!!’ पर उन्हें इस पिशाच से बचाने वाला भी कोई नहीं था, इधर चेले कुछ समझ पाते कि धोती छोडकर कुत्ता बाबाजी के पीछे लपका, सारे चेले कुत्ते के पीछे भागे, जिसने कुत्ते को पकड़ने का प्रयास किया उसे कुत्ते ने काट काटकर छलनी कर डाला और इस तरह बाबाजी को छकाते हुए मोहल्ले के बाहर तक छोडकर आया….तबसे हमारे मोहल्ले में कोई बाबाजी नहीं आये हैं!!!

________सौरभ कुमार

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

One thought on “लघुकथा : कुत्ता

  • विजय कुमार सिंघल

    हा…हा..हा… कुत्ता उस ढोंगी बाबा की असलियत जानता होगा.

Comments are closed.