कविता

द्रोपदी का चीर…

द्रोपदी का चीर हर बार अब तार तार होता है
दुशासन बैठे गली गली में दुर्योधन हर द्वार होता है
धृतराष्ट्र की आँखें देख सकती हैं पर रोक नहीं सकती
चुपचाप पितामहों के बीच यही दुराचार होता है
गांधारी की पट्टी के पीछे दुर्योधन को आशीष हैं
कुंती के मन में प्रश्न आज भी कुछ शेष हैं
कर्ण हैं कई पर भीम सी प्रतिज्ञा कोई लेता नहीं
धर्म भी साथ अब देखो अबला का देता नहीं
तड़पती रह जाती है आत्मा बिलखती रहती है
हृदय की ज्वाला भी बस सुलगती रहती है
हर दिन हर रात की पीड़ा का चीत्कार होता है
द्रोपदी का चीर हर बार अब तार तार होता है !!

अर्जुन का गांडीव बस अब रह गया टंकार का
युद्धिष्ठिर के माथे फूटेगा घडा ये भी हार का
चरमराते शासन में बस दुशासन सक्रिय है
द्रोण को भी बस अपना अश्वत्थामा ही प्रिय है
विदुर भी चुपचाप केवल एक कोने पर खड़े हैं
जो आवाज उठाते थे उनके सर उखड़े पड़े हैं
कृष्ण तुम आते नहीं ना शरद पूनम रात को
लाज भी बचाते नहीं, देखते कुठाराघात को
अब सभा नहीं बीच गली में बलात्कार होता है
द्रोपदी का चीर हर बार अब तार तार होता है!!

_________________सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

2 thoughts on “द्रोपदी का चीर…

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. आज के संधर्भ में पुरानी बात को प्रस्तुत करना प्रशंसनीय है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता जो आज की सच्चाई ज़ाहिर करती है .

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