कविता

चाँद

चाँद से
किसी ने पूछा
अपनी
प्रेयसि का पता
चाँद ने
दिया पता बता
पूछने वाले ने
रकीब समझ लिया
अब बताओ
उसकी क्या खता
सबको राह दिखाता
निशा श्रृंगार
प्यारा शशि मुखरा
पा भू दमकी
प्लैटिनम सौगात
राका की रात
सिंधु उर्मि बहके
लो चकोर चहके

 

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

One thought on “चाँद

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह ! वाह !!
    “चाँद ने रात मुझको जगाकर कहा, एक लड़की तुम्हारा पता ले गयी.”

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