“लिखना “
“लिखना ”
पल भर के लिए मिलना है
जीवन भर उसे लिखना है
एक लहर छूकर लौट गयी
ज़ख़्मों को अब सीलना है
कोई नही जानता मुझे
आईने से ये कहना है
खामोश रहते है कैसे तारे
उनसे तरीका सीखना है
अपने ही नशे में चूर चूर हूँ
शीशी से मय सा छलकना है
किशोर कुमार खोरेंद्
अच्छी कविता .
बढ़िया