कविता

“मैं वो एक परिंदा हूँ “

“मैं वो एक परिंदा हूँ “
हे शिव जी
तुम मेरे हो ,मै तुम्हारी हूँ
बस इसी भ्रम में
मैं ज़िंदा हूँ
हर हर शिव महादेव
मै ध्यान में जीती हूँ ,
ध्यान में मरती हूँ
मै वो एक परिंदा हूँ
जो ..शिव के स्वर्गलोक
उड़ उड़ कर जाए
बारम्बार
वही की मै वासिन्दा हूँ
शिव जी मैंने जबसे देखा हैं तुम्हारी छवि
तबसे हो गयी हूँ मै बावरी
बन गयी हूँ प्रेम दिवानी
तुम मेरे हो मै तुम्हारी हूँ
इस बात पर मुझे गर्व हैं
नहीं मै शर्मिंदा हूँ
जिंदगी कों मरकर जीना हैं
धरती पर आये हैं तो
दुखो कों सहना हैं
शिव जी भव सागर से पार करा देते हैं
हमें भी मन कों संयमित रखना हैं
सदा शिव जी के पास रहना हैं
जीवन का अर्थ ही
जन्मना और मरना हैं
बस शिव जी की ज्योति के
उजाले में रहना हैं
छोटे से जीवन में
ईश्वर की ओर ध्यान लगाना हैं
शिव ..आपके चरणों में पड़े रहूँ
मेरी बस यही प्राथना हैं
हे शिव जी
तुम मेरे हो मै तुम्हारी हूँ
बस इसी भ्रम में
मैं ज़िंदा हूँ
हर हर शिव महादेव
मै ध्यान में जीती हूँ ,
ध्यान में मरती हूँ
मै वो एक परिंदा हूँ

साध्वी बरखा ज्ञानी

साध्वी बरखा ज्ञानी

बरखा ज्ञानी ,जन्म 10-05, रूचि शिव भकत, निवास-रायपुर (छत्तीसगढ़)

3 thoughts on ““मैं वो एक परिंदा हूँ “

  • गुंजन अग्रवाल

    sundar kavita

  • विजय कुमार सिंघल

    श्रेष्ठ चिंतन !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी धार्मिक कविता .

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