कविता

“तटस्थ “

“तटस्थ ”

मैं तुमसे कभी मिल नहीं सकता हूँ
न तुमसे कभी कुछ कह सकता हूँ

मुझे तेरा घर मंदिर सा लगता है
जैसे ही गली में मैं पांव रखता हूँ

बर्फ सी जमी तन्हाई कहीं पिघल न जाए
आजकल फ़ासिला कम करने से डरता हूँ

अतीत के पन्नों में सुर्ख पंखुरियाँ दबी हुई है
लोग कहते है मै गुलाब से ज्यादा महकता हूँ

तुम्हें तो तटस्थ रहने की आदत है
अपनी बेबसी पर रोता हूँ हँसता हूँ

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

4 thoughts on ““तटस्थ “

  • गुंजन अग्रवाल

    sundar srijan

  • साध्वी बरखा ज्ञानी

    bahut khub

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता भाई साहिब .

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