देश की न्याय व्यवस्था
आखिर ”वही” हुआ जो होना ”तय” था ! ”जयललिता” जेल से ”रिहा” हो गई ? क्योंकि एक ” बड़ी अदालत ” को अपने से ”छोटी अदालत” पर ”विश्वास” नहीं है. जिस ”जज” ने ”चार साल” की कैद और 100 करोड़ का ”जुर्माना” लगाया है क्या उसमे ‘काबलियत’ नहीं थी, हैसियत नहीं थी या उस ने ”पक्षपात” किया था ! यदि निचली अदालतों के फैसलों पर ”भरोसा” नहीं है तो इन्हे ”बंद” क्यों नहीं कर देते !
ये निचली अदालते सरकारी ”डिस्पेंसरियों” की तरहा केस खराब करने के लिए है. जब यहां का डॉक्टर ”जवाब” दे दे तो रोगी को ‘बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल में ले जाओ. फिर और बड़े उसके बाद और बड़े हॉस्पिटल ले जाओ ! गाँठ में पैसा होना चाहिए ! यही हाल हमारी अदालतों का है !
बड़े बड़े वकील/बैरिस्टर जिनकी पहुँच न्यायधीशों के ड्राइंगरूम/चेंबर तक होती है. सफलता उनके ”कदम चूमती” है ! बड़े से बड़ा ‘अपराधी, भ्र्ष्टाचारी और दुराचारी
सलाखों के बाहर नज़र आता है ! २००८ से जेल में बंद प्रग्या ठाकुर को केंसर के बाद भी अदालत को दया नहीं आ रही है जबकि अभी तक उन पर जुर्म साबित नहीं हुआ है, और लालू, जयललिता जैसे मुजरिम बेल लेकर मजे कर रहे है, यही व्यवस्था है यही न्याय है यही एक ‘सत्य है ! …..
# हाथ में इन्साफ का तराज़ू और आँखों पर ‘गांधारी’ वाली पट्टी ! वाह क्या बात है ..
सही कहा है आपने. भारत में न्याय व्यवस्था को वकीलों ने बंधक बना रखा है. ज्यादातर न्यायाधीश उनके हस्तक हैं. जो वास्तविक न्याय करते हैं वे गिने चुने और कम प्रभावी हैं. फिर भी लोग न्याय के लिए वहां जाते हैं यह घोर आश्चर्य की बात है. जयललिता ने जमानत पाने के लिए बहुत हथकंडे अपनाए हैं.
धर्म सिंह जी , भारत की निआए पर्नाली पर मुझे कोई विशवास नहीं है , जिन को जेल में होना चाहिए वोह बाहिर मज़े में घूम रहे हैं और जिन का अभी कोई जुर्म साबत भी नहीं हुआ वोह जेल में बंद हैं . और सभ से ज़िआदा हंसी मुझे लोगों पर आ रही है . जिस इंसान को सौ करोड़ का जुर्माना हुआ और चार साल की जेल हुई उन पर लोगों को दया आ रही है और उनको छुडाने के लिए मुजाहरे कर रहे हैं . वाह रे वाह .