बशीर बद्र : नई ग़ज़ल का एक नाम
बशीर बद्र साठोत्तरी पीढ़ी के महत्व पूर्ण शायर हैं , आज़ादी के बाद उर्दू ग़ज़ल का वे खूबसूरत नाम हैं
उन्होने ग़ज़ल को एक अलग पहचान देने का प्रयत्न किया है. वे मेरे प्रिय शायर है. उनकी कुछ ग़ज़ल मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ जो मुझे बहुत प्रिय है.
1-
खुश रहे या बहुत उदास रहे
जिंदगी तेरे आस पास रहे
चाँद इन बदलियों से निकलेगा
कोई आएगा दिल को आश रहे
हम मोहब्बत के फूल हैं शायद
कोई काँटा भी आस पास रहे
मेरे सीने मे इस तरह बस जा
मेरी साँसों में तेरी बास रहे
आज हम सब के साथ खूब हँसे
और फिर देर तक उदास रहे
2-
मुसाफिर के रस्ते बदलते रहे
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे
मेरे रास्तों में उजाला रहा
दिए उसकी आँखों में जलते रहे
कोई फूल सा हाथ काँधे पे था
मेरे पाँव शोलों पे चलते रहे
वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे
मुहब्बत अदावत ,वफ़ा ,बेरूख़ी
किराए के घर थे बदलते रहे
3-
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
हमने दुनिया से दोस्ती कर ली
तुम मोहब्बत को खेल कहते हो
हमने बर्बाद जिंदगी कर ली
सबकी नज़रें बचा के देख लिया
आँखों आँखों में बात भी कर ली
आशिकी में बहुत ज़रूरी है
बेवफ़ाई कभी कभी कर ली
धड़कनें दफ़्न हो गयी होंगी
दिल में दीवार क्यों खड़ी कर ली
4-
बेवफा रास्ते बदलते हैं
हम सफ़र साथ साथ चलते हैं
किसके आँसू छुपे है फूलों में
चूमता हूँ तो होंठ जलते हैं
उसकी आँखों को गौर से देखों
मंदिरों में चराग़ जलते हैं
एक दीवार वो भी शीशे की
दो बदन पास पास जलते हैं
काँच के ,मोतियों के ,आँसू के
सब खिलौने ग़ज़ल में ढलते है
5-
सूरज चंदा जैसी जोड़ी हम दोनों
दिन का राजा रात की रानी हम दोनों
जगमग जगमग दुनिया का मेला झूठा
सच्चा सोना सच्ची चाँदी हम दोनों
इक दूजे से मिल कर पूरे होते हैं
आधी आधी एक कहानी हम दोनों
पर्वत पर्वत बादल बादल किरन किरन
उजले पर वाले दो पंछी हम दोनों
मैं देहलीज का दीपक हूँ आ तेज हवा
रत गुज़रे अपनी अपनी हम दोनों
6-
आँसुओं के साथ सब कुछ बह गया
दिल में सन्नाटा सा बाकी रह गया
छोड़ आया हूँ ज़मीनों आसमाँ
फसिला अब और कितना रह गया
रफ़्ता रफ़्ता बुझ गये सारे चराग़
एक चेहरा झिलमिलता रह गया
बस्तियाँ धुँधला गयीं फिर खो गयी
रौशनी का शहर पीछे रह गया
बशीर बद्र
नई ग़ज़ल का एक नाम
से संकलित
संकलन कर्ता
किशोर कुमार खोरेंद्र
19-10-14
डॉ बशीर बद्र एक श्रेष्ठ शायर थे. उनकी रचनाएँ पढ़कर अच्छा लगा.
thank u