दिवाली
दिवाली है खुशिओं का त्योहार
पर क्या सच-मुच खुश है हम आज ?
पूजा करे लक्ष्मी की इस दिन
पर बहू-बेटियों पर अत्याचार
न हुए कम
गैग रेप, भ्रूण-हत्या की खबर
अब हो गयी आम
काला धन जमा विदेशी खातों मे भी आज
कश्मीर मे आयी बाढ़
लोग हूए बे-घरबार
हुद-हुद ने पूर्व तट पर मचाई तबाही
उजड़ गए घर-परिवार
देश मे खत्म हुआ ना भ्रष्टाचार
दाल-सब्जी के भाव हुए ना कम
भूखमरी से जूझ रहा है गरीब इंसान
शिक्षित है बेरोजगार
गंदगी है फैली चारों और
अपने पंख फैला रहा है आंतकवाद
सीमा पार से गोला-बारी न रही थम ।
चलो करे इस दिवाली पे प्रतिज्ञा
घर मे सिर्फ दिया जला कर
शांतिपूर्वक बिन पटाखो और आतिशबाज़ी
बिन नकली चमक -दमक और फजूलखर्ची ।
मनायेगे दीवाली धूम-धाम से
जब महिलाओं पर अत्याचार हो जाये खत्म
आंतकवाद और भृष्टाचार पर पा ले हम विजय
सारा भारत हो
स्वच्छ और सुंदर
काला धन आये वापिस
हो देश का विकास
देश हो गरीबी मुक्त
हो जाये राम-राज्य स्थापित
फिर से कहलाए भारत
“सोने की चिड़िया”
तभी है मजा असली दीवाली मनाने का
—– अरविंद कुमार
अच्छी कविता.
बहुत अच्छी कविता.