और अभिशाप को वरदान मानकर लपक लिया हमने
हमारे यहां बचपन से ही बच्चों को अपने से बड़ों के अभिवादनस्वरूप चरणस्पर्श या हाथ जोड़कर नमस्कार करने के संस्कार देने का चलन रहा है I चरणस्पर्श या झुकने से भीतर क्या क्या परिवर्तन होते हैं या हाथ जोड़ने से शरीर के ऊर्जा प्रवाह में क्या परिवर्तन होता है तथा हाथ मिलाने से दूसरे व्यक्ति की अच्छी या बुरी ऊर्जा, सोच या वाइब्रेशन्स किसतरह हमें प्रभावित करते हैं, यह एक अलग विषय है, फिलहाल तो हम स्थूल प्रभावों के विषय में अपना ध्यान केन्द्रीत करेंगे I
आइए ! देखते हैं, मातृभाषा की विदाई और अंगरेजी देवोभव से मिले इस उपहार ने हमें क्या क्या और कैसे कैसे नायाब रत्न दिए हैं ?
ऐसे दृश्य आपकी तरह मैंने भी खूब देखें हैं कि अधिकांश परिवारों में, अभी बच्चे की जीभ ने कुछ शब्द बोलना सीखे ही हैं कि उसको अंगरेजी सभ्यता के अंधानुकरण के जरिए अंग्रेजियत का नायाब हीरा सिद्ध करने की जुगत शुरू हो जाती है I बेटा, अंकल से टाटा करो, शेकहैण्ड करो, फिर शान से इतराकर बताते हैं, देखो शेकहैण्ड सीख गया है I शेकहैण्ड की इस शेखी पर पूरा परिवार न्यौछावर हुआ जाता नजर आता है I
हाथ मिलाना अभिशाप है, हम नहीं कहते, ज़माना कहता है ….
जार्ज मेसन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कोवेन उन लोगों में से हैं जो हेलो, गुडबाय या किसी सन्धि, अनुबंध या व्यावसायिक समझोते (डील) के पहले हाथ मिलाने की परंपरा को बेहद खतरनाक मानते हैं I वे इसे अपने देश का सबसे विचारहीन रिवाज (मोस्ट रेकलेस कस्टम) मानते हैं I डोनाल्ड ट्रम्प इसे अमेरिकन सोसायटी का अभिशाप कहते हैं I इंगलैंड के चिकित्सक अपने ओलम्पिक खिलाड़ियों को सलाह देते हैं कि वे हाथ मिलाने से बचें I स्वाइन फ्लू के वैश्विक विस्तार से आम जनता और स्कूली बच्चों को बचाने के लिए हाथ मिलाने से रोकने के लिए नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी द्वारा स्टॉपहैण्डशेकिंगडॉटकॉम शीर्षक से वेबसाइट शुरू की गई I टाइम मैगज़ीन ने 1925 के अपने एक अंक में एक डॉक्टर के हवाले से बताया था कि आम आदमी के हाथों में उसके शरीर के स्राव (सिक्रीशंस) मौजूद रहते हैं, जिनमें रोगग्रस्त व्यक्ति के विषाणु भी होते हैं, जो हाथ मिलाने से दूसरे तक पहुँच जाते हैं, इन्हें उन्होंने मृत्यु वितरक (purveyors of death) कहा था I अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हाथ मिलाने के इस अभिशाप से अमेरिकी जनता को मुक्ति दिलाने के लिए एक सशक्त मुहीम चला रखी है, जिसे मीडिया और आम जनता में खूब प्रचार प्रसार और प्रतिसाद मिला है, वह यह कि हाथ मिलाने की बजाय मुट्ठी भिड़ाने (FIST BUMP) का I
वेल्स की अबेर्य्सट्वीथ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ.डेव व्हिटवर्थ ने बी.बी.सी. न्यूज़ वेबसाइट को बताया था कि हाथ मिलाने से रोगाणुओं का ट्रांसमिशन अत्यधिक होता है I जर्नल ऑफ़ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन ने अस्पतालों में शेकहैण्ड को प्रतिबन्धित करने का आव्हान किया था I पब्लिक हेल्थ, इंगलैंड का सुझाव था कि हाथ मिलाने की अपेक्षा विक्टोरियन युग की तरह झुककर अभिवादन करना ज्यादा सुरक्षित है I न्यूयार्क टाइम्स मैगज़ीन ने 1996 में प्रोफेसर राबर्ट स्विंडल का साक्षात्कार प्रकाशित किया था, उनका कहना था कि क्या आप हाथ मिलाकर गिफ्ट में वायरल, बैक्टीरियल,फंगल इन्फेक्शन या वार्ट्स लेना पसन्द करेंगे ? इसके तुरंत बाद ही मेसाचुसेट्स मेडिकल सोसायटी ने रेडियो के माध्यम से अपने श्रोताओं को आगाह किया कि बार बार हाथ धोएं और दोस्ताना हाथ मिलाना भी कई रोगों का वाहक हो सकता है, इसलिए हाथ मिलाने से बचें I नेट पर उपलब्ध एक आलेख का शीर्षक अपने नन्हे नन्हे लाड़लों को शेक हैण्ड सिखाने के लिए बेताब भारतीय अभिभावकों को सावधान कर सकता है “हैण्डशेक्स आर ए फिल्थी (गन्दा), डिसीज स्प्रेडिंग ट्रेडिशन” I
मुट्ठी भिडाना कितना कारगर
वैज्ञानिकों का आकलन है कि परस्पर मुट्ठी भिड़ाने से विषाणुओं और रोगाणुओं का स्थानान्तरण (ट्रांसमिशन) 90% तक कम हो जाता है I काश ! वे अपनी जनता को हाथ जोड़ने की सलाह देते तो इसतरह से रोग के संक्रमण को ज्यादा प्रभावी ढंग से नियन्त्रित कर सकते थे I आप सोच रहे होंगे कि शायद भारतीय परम्परा को अपनाने में अहंकार आड़े आया होगा और यह भी कि भारतीय तो स्वमेव अमेरिकी सभ्यता का अंधानुकरण कर गर्व से फूले नहीं समा रहे हैं, उनको हतोत्साहित क्यों किया जाए I
(अन्दर की बात – दरअसल यह बहुत स्थूल तर्क है I हकीकत यह है कि यदि किसी सामान्य दिखने वाले असामान्य भारतीय को भीतर तक लग गया कि भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति थी और आज भी है और उसके मन में अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व का भाव दिव्य भाव जागृत हो गया तो तूफ़ान आ सकता है I इतिहास गवाह है, भारत का अकेला चना लोहे की मजबूत भाड़ को फोड़ डालने में सक्षम रहा है I पौराणिक चरित्रों से इतर महात्मा कबीर, महाराणा प्रताप, आचार्य चाणक्य, मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, महर्षि अरविन्द, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, डॉ.केशवराव बलिराम हेडगेवार, विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण जैसे अगणित सामान्य भारतीयों ने सूचना क्रान्ति के वर्तमान स्वरूप के अभाव में भी इतिहास बदल डालें हैं और वामन होते हुए भी असामान्य क्रांतियों को रचा है I सूचना क्रान्ति के इस युग में बाबा रामदेव और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नए इतिहास की रचना कर विश्व के मानचित्र पर भारत को नई पहचान दी है I ऐसी पारम्परिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के चलते कोई भी शक्तिशाली व्यक्ति या देश ऐसा कोई काम नहीं करने वाला है, जिससे भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता की बात अंतरराष्ट्रीय मंच से घोषित हो, क्योंकि एकाध भारतीय का भी स्वाभिमान जागा (यानी मंगल पाण्डे की तरह दिमाग में चिंगारी जली) तो वह ग्लोबल बाजार की आड़ में सांस्कृतिक अपमिश्रण के माध्यम से चलाये जा रहे व्यापार-विस्तार का विराटतम ताना बाना तहस नहस करने के प्रयासों का सफल और सार्थक शुभारम्भ कर सकता है I शराब, सिगरेट, कण्डोम, गर्भपात की दवाएं-उपकरण, पिज्जा-बर्गर, फास्टफूड, जंकफूड, कोल्डड्रिंक, गारमेंट्स, डी ओडेरेंट्स, लिव इन रिलेशनशिप, सेक्स एजुकेशन, एड्स और कैंसर की दवाएं, सर्दी खांसी की दवाओं का बड़ा बाजार, रासायनिक खाद, कीटनाशक आदि का विराट बाजार जैसे व्यापार तो आइसबर्ग हैं, जिनके चलते भारत का पैसा लगातार विदेशों की तरफ प्रवहमान है I स्वाभिमान जागने से इन सबका तथाकथित औचित्य समाप्त हो सकता है.
हाथ जोड़ना शुरू करें, पैसा भी जुड़ने लगेगा
अकेले सर्दी खांसी की दवाओं का बहुत बड़ा बाजार भारत में है, जिनके बारे में विदेशी चिकित्सा विज्ञानियों का दावा है कि उनमें से दस प्रतिशत ही प्रभावी हैं I यह भी सच है कि उनके अपने साइड इफेक्ट्स हैं, जो निश्चितरूप से शरीर के लिए अच्छे नहीं हैं I एक सच बात यह भी है कि सर्दी खांसी के घरेलू नुस्खे ज्यादा कारगर हैं I सिर्फ इसी बात को सूचना क्रान्ति के माध्यम से प्रभावी तरीके से राष्ट्रव्यापी बना दिया जाए और हाथ मिलाने की कुप्रथा पर वास्तविक प्रतिबन्ध लग जाए तो सेहत भी अच्छी रहेगी तथा जेब का पैसा बेकार दवाएं खरीदने में खर्च नहीं होगा I
बहुत अच्छी लेखमाला, डॉ साहब.