कविता

कविता : एक इंसान

देखकर आँखों में उसकी

सीमाओं मे बंधा
छलकने को आतुर
सैलाब सम
पूछा लिया मैनें
जाने अनजाने
वजह उन हालात की
फिर नहीं रूका
फट पडा वो
बहने लगा
उन्मुक्त सा
निकाल दिया सब
ताप संताप
चला था राह पर
हसरत लिए दिल में
बनेगा कष्ट निवारक
सबके लिए
बनाता इंसान
खुद भी बन जाता वही
तोड दिया मगर
सफर हकीकत ने
तोडे उसके सपने
उसके ही अपनो नें
रह गया अकेला
दंग रह गया मै
सुनकर हिमाकत उसकी
अन्दर तक हिला दिया
मेरा पूरा वजूद
संभला स्वयं पहले
दिया उसे दिलासा
बांधी फिर से हिम्मत
निकल पडा मैं भी
साथ देने उसका
वो बन गया था
और बना दिया था मुझे
एक इंसान

2 thoughts on “कविता : एक इंसान

  • जवाहर लाल सिंह

    सुन्दर! साथ देने उसकावो बन गया था
    और बना दिया था मुझे
    एक इंसान…

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह ! वाह !!

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