कैसे जिए
कभी कभी बेगानी सी लगती हैं यह दुनिया,
कभी कभी जानी पहचानी सी लगती हैं|
झूठ को जब जब जिया अपनी सी लगी,
सच का आइना दिखाया तो बेगानी हुई|
फरेब जब करने चले बड़ी सुहानी लगी,
अच्छाई करने पर बड़ी हैरानी सी हुई|
नियत जब साफ़ रक्खी हमने हंसी का पात्र हुई,
बदनीयती की जब हमने सब ने हाथों हाथ लिया|
धोखा देना जब तक ना आया हमको,
जीना हुआ था बहुत ही दुश्वारअपना|
जैसे ही यह गुर सिख लिया,
बखूबी जीना हमने सीख लिया||….. सविता मिश्रा
बहुत बढ़िया !
दिल से शक्रिया
सविता बहन , यह कविता पहली कविता की दुसरी साइड है लेकिन जिस तरह मैंने पहले लिखा हेरा फेरी करके जितना मर्जी बुलन्दिआन छू ले लेकिन उस के भीतर किया चल रहा होता है और ख़ास कर जब कानून के शिकंजे में आ जाता है चलाकिआन भूल जाती है .
दिल से आभार भैया .सादर नमस्ते …..सहीं कहें भैया आप
तहेदिल से आभार भैया .सादर नमस्ते
बहुत खूब !
दिल से आभार भैया .सादर नमस्ते
दिल से आभार भैया .सादर नमस्ते