कविता

कैसे जिए

कभी कभी बेगानी सी लगती हैं यह दुनिया,
कभी कभी जानी पहचानी सी लगती हैं|

झूठ को जब जब जिया अपनी सी लगी,
सच का आइना दिखाया तो बेगानी हुई|

फरेब जब करने चले बड़ी सुहानी लगी,
अच्छाई करने पर बड़ी हैरानी सी हुई|

नियत जब साफ़ रक्खी हमने हंसी का पात्र हुई,
बदनीयती की जब हमने सब ने हाथों हाथ लिया|

धोखा देना जब तक ना आया हमको,
जीना हुआ था बहुत ही दुश्वारअपना|

जैसे ही यह गुर सिख लिया,
बखूबी जीना हमने सीख लिया||….. सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

8 thoughts on “कैसे जिए

  • मनजीत कौर

    बहुत बढ़िया !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सविता बहन , यह कविता पहली कविता की दुसरी साइड है लेकिन जिस तरह मैंने पहले लिखा हेरा फेरी करके जितना मर्जी बुलन्दिआन छू ले लेकिन उस के भीतर किया चल रहा होता है और ख़ास कर जब कानून के शिकंजे में आ जाता है चलाकिआन भूल जाती है .

    • तहेदिल से आभार भैया .सादर नमस्ते

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

Comments are closed.