तीन मुक्तक
ज़िन्दगी की दौड़ में रास्ते बदल जाते हैं
रास्ते में कुछ अंजान हमसफ़र मिल जाते हैं
देते हैं कुछ प्यार और ममता का झूठा भरोसा
फिर तो बस अपने भी गैर नज़र आते हैं.
ज़िन्दगी में निश्छल प्रेम कर साथ निभाती है माँ
अच्छे बुरे का भेद बताकर राह दिखाती है माँ
कांटों भरी राहों में आँचल अपना बिछाकर
सब दुःख अपने ही सीने पर झेल जाती है माँ ।
थाम तेरा हाथ हम दूर तो निकल जायेंगे
तेरे हर ज़ख्म का मरहम भी बन जायेंगे
गर तुम मरहम बन जाओ मेरे जख्मों का
ताउम्र खुद को तेरे लिए ज़ख्म सहते जायेंगे ।
dhnywad aa kishor kumar sir ji
shukriya vijay bhai
बहुत अच्छी कविता गुंजन जी .
nice
अच्छे मुक्तक !